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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्य पन सूत्रम् ॥ ९०४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स निग्रंथो भवेत् स इति कः ? यः शब्दरूपरसगंधस्पर्शानुपाती न भवेत. शब्दच रूपं च रसश्र गंधा स्पर्शश्च शब्दरूपरसगंधस्पर्शाः, तान् अनुपतत्यनुयातीति शब्दरूपरसगंधस्पर्शानुपाती, शब्दो मन्मनादिः रूपं स्त्रीसन्धिलावण्यं, रसो मधुरादिः, गंधचंदनागुरुकस्तूरिकादिः, स्पर्शः कोमलस्त्वक्सौख्यदः, एषां भोक्ता साधुर्न स्यात् इत्युक्ते शिष्यः पृच्छति, तत्कथमिति चेदाचार्य आह निग्रंथस्य खलु निश्चयेन शब्दरूपरसगंधस्पर्शानुपातिब्रह्मचारिणो ब्रह्मच शंकादयो दोषा उत्पद्यंते, तस्माच्छंकादिदोषाणां प्रादुर्भावात्खलु निश्चयेन निग्रंथः शब्दरूपरसगंधस्पर्शानुपाती विषयासेवी न भवेत् ॥ १० ॥ एतद्दशमं ब्रह्मचर्य समाधिस्थानं. १० अधात्र सर्वेषां दशानां समाधिस्थानानां संग्रहश्लोकान् पद्यरूपानाह-तं जहा निर्बंध तो ते धाय के जे शब्दरूप रस गंध स्पर्शानुपाती न थाय. शब्द=मन्मनादिक, रूप = स्त्री संबंधि लावण्य, रस= मधुरादिक, गंध=चंदन, अगर, कस्तूरिका; इत्यादिक, स्पर्श= कोमळ -स्वक् इंद्रियने सुख उपजाननार; आ पांचेनो अनुपाती=भोक्ता साधु न होय आम कहेतां शिष्य पूछे छे 'ते केम ?' त्यां आचार्य कहे छे-निश्वये निग्रंथ जो शब्द रूप रस गंध स्पर्शादि विषय सेवे तो ते ब्रह्मचारीना ब्रह्मचर्यमां शंकादिक दोषो उत्पन्न याय छे. तेथी ए शंकादि दोषोनो प्रादुर्भाव न थाय ते माटे निग्रंथे निश्चये = सर्वथा शब्दरूप रस गंध स्पर्शना अनुपाती, ए विषयोनुं आ सेवन करनार न थबुं. १० आ दशम ब्रह्मचर्य समाधिस्थान कहुँ अथ हवे अत्रे सर्वदशे समाधिस्थानोना पद्य रूप संग्रह लोको कहे छे-जेबा के अं विवित्तमणानं । रहियं धीजणेण य ॥ बंभबेरस्स रक्खठ्ठा । आलयं तु निसेवए ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्य०१६ 1180811
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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