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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्य यन सूत्रम् ॥९०३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नीयो भवेत् ततो णं ततः पश्चात् स्त्रीजनेनाभिलषणीयस्य ब्रह्मचारिणो ब्रह्मचर्य शंकादयो दोषा उत्पद्यते तस्माच्छंकादिदोषाणां प्रादुर्भावात्खलु निश्चयेन निग्रंथो विभूषानुवर्तिको न भवेत् ॥ ९ ॥ इति नवमं ब्रह्मचर्यसमाधिस्थानं. इति नवमी वाटिका. अथ दशमी कथ्यते निर्ग्रथ तो ते होय के जे विभूषानुपाती न होय विभूषा एटले शरीर शोभा, तेनी पाछळ पडतेमां चीवट राखत्री ए जेनुं शीळ होय ते विभूषानुपाती अथवा विभूषानुवर्ती कहेवाय शरीर शोभा करवानां साधन, स्नान दंतधावनादिक संस्कार न करतो होय ते साधु ब्रह्मचारी आ सांभळी शिष्ये पूछयुं 'ते केम ?' त्यां आचार्य कहे छे निश्वये निश्रेय = साधु जो विभूषानुवर्ती = शरीर शोभा करनार एटले स्नानादिकथी सुशोभित शरीर थाय तो तेत्रो विभूषित शरीर पुरुष स्त्रीजननो अभिलषणीय अर्थात् कामभोगार्थ वांना राखवा योग्य बने तेथी ते स्त्रीजनना अभिलाषा विषय बनेला ब्रह्मचारीना ब्रह्मचर्यम शंकादि दोषो उत्पन्न थाय छे ते कारणथी शंकादि दोषो प्रादुर्भूत न थवा माटे निग्रंथ विभूषानुपाती न थाय ९ नो निग्धे सद्दरूवरसगंधफासाणुबाई भवेज्जा हवइ, से निग्गंथे, तं कहमिति चेत् आयरियाह- निग्गंथस्स खलु सदरूवरसगंधफासाणुवाइयस्स वंभयारिस्स बंभचेरे संका० तम्हा खलु नो निग्गंथे सहरूवरसगंधफासाणुवाई भवेज्जा. जे निग्रंथ शब्द, रूप, रस, गंध तथा स्पर्श; ए पांच विषयोनो अनुपाती न थाय से निग्रंथ होय, 'ते केम?' एम शंका करी आचार्य कहे छे-जो निथ निश्चयें शब्द रूप रस गंध तथा स्पर्शनो अनुपाती थाय तो ते ब्रह्मचारीना ब्रह्मचर्यमां शकादि दोषो उद्भवे ते कारणथी निग्रंथे शब्दरूप रस गंध स्पर्शादि विषयोनी पाछळ पडनार न थवु. १० For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्य०१६ ॥९०३॥
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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