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हास्यने उत्पन्न करनार अट्टाहास्य तथा दांत काढवाथी थता शब्द, अथवा स्तनितशब्द भोग समये जाणे दूरथी मेघगर्जना यती उत्तरायहोय तेम संभळातो शब्द, कंदित शब्द जेना पति विदेश गया होय तेवी विरहिणी स्त्रीयोना पति वियोगना दुःखथी थता शब्द,
भाषांतर पन सूत्रम् l तथा विलपित शब्द-पोताना पतिना गुणोने याद करी करीने विलाप करती स्त्रीयोना शब्दी; आवा प्रकारना स्त्रीयोना शब्दो प्रत्ये Jodअध्य०१६ १८९८॥
| जे श्रोता न थाय ते निग्रंथ छे एम कहेवाय. आ सांभळी शिष्य पूछे छे-'जे आ का ते केम थाय ? त्यारे आचार्य कहे छे. हे शिष्य ! निश्चयें कुख्यादिकना अंतर जेवां पूर्वोक्त स्थाने छुपा रहीने स्त्रीयोना पूर्वोक्त कूजितादिक शब्दोने सांभळनार निग्रंथ ब्रह्मचारि होय तो पण ब्रह्मचर्यमा शंका कांक्षा इत्यादिक दोषो उत्पन्न थाय ते कारणथी निग्रंथे निश्चये कुड्यादिकने ओठे रहीने स्वीयोना जितादि शब्दो न सांभळतां विचरg. स्त्रीयोना कामोद्दीपक शब्दो सांभळनार साधु न होय; एवो भाव छे. ५ एवी रीते आ पंचम ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान का आ पंचमी वाटिका. ५
नो निग्गंथे इत्थीणं पुवरयं पुब्वकीलिअं अणुसरित्ता हवइ, से निग्गंथे. तं कहमिति चेत् आहरिआह-निग्गJथस्स खलु इत्थीणं पुज्वरय पुञ्चकीलियं अणुसरेमाणस्स भयारिणो जाव धम्माओ भंसिजा, तम्हा खलु नो निग्गंथे
इत्थीणं पुव्वरयं पुब्धकीलियं सरिज्जा.॥६॥ Indl निग्रंथ साधु पूर्वना गृहस्थावस्थामा करेलां रत-संभोग, तथा प्रथम करेली द्यूतादिक क्रीडाना अनुस्मर्ता-स्मरण करनार न थाय JEसे निग्रंथ होय. 'ते केम' एम शंका करी आचार्य कहे हे निश्चयें स्त्रीयोनां पूर्वना रत तथा पूर्वनां क्रीडितनां अनुस्मरण करनारो
निग्रंथ ब्रह्मचारीना यावत् धर्मथी भ्रष्ट थाय ते कारण माटे निग्रंये खोयोना पूर्वरत अथवा पूर्व क्रीडितने निश्चये स्मरण न करवां
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