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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersari Gyanmandir उत्तराध्यपन सूत्रम् ॥१.३२॥ भाषांतर अध्य०१८ ॥१.३२॥ 'आपणे पण जइए' नमुचि मंत्री बोल्यो-'जइये भले, पण तमारे त्यां मध्यस्थ बनीने सांभळ्या करचु, तेनी साथे वाद करी तेने बोलतो बन्ध करीश.' आम संकेत करी राजा नमुचिने साथे लइ त्यां गया. जइने नमुचि बोल्या के-'हे श्रमणो ! जो तमे धर्मतत्वने जाणता हो तो बोलो ?' आलु बोल्या त्यांतो ते सर्वे मुनियो 'आ कोइ क्षुद्र छे' एम समजी मौन धारी रह्या. त्यारे नमुचि अत्यन्त रोषे भराइ मुरी प्रत्ये एम बोल्या-'हे मुनियो! आ बयल्लबळद शुं जाणे छे?" त्यारे मूरि बोल्या के-'यदि तमाम मुख चळवळे छे तो अमे कहीये छइए' आ वचन सांभळी अनेक शास्त्रमा विचक्षण एक क्षुल्लक शिष्य हतो ते बोली उठ्यो के-- 'हे भगवान् ! हुंज एनुं निराकरण करीश' एम कही ए क्षुल्लके नमुचिने वादां हराव्यो=निरुत्तर करी दीधो, तेथी ते मन्त्रीने साधुभोना उपर द्वेप थयो.. गत्रौ च चरवृत्त्यकाक्येव मुनिवधार्थमागतो देवतया स्तंभितः. प्रभाते तदाश्चर्य दृष्ट्वा राज्ञा लोकेन च म भृशं निरस्कृतो विलक्षीभूनो गतो हस्तिनागपुरं, महापद्मयुवराजस्य मन्त्री जातः. इतश्च पर्वतवामी सिंहबलो नाम राजा, सच कोहाधिपतिरिति महापद्मदेशं विनाश्य कोट्टे प्रविशति, ततो मष्टेन महापद्मन नमुचिमन्त्री पृष्टः, सिंहयलराजग्रहणे किंचिदुपायं जानासि ? नमुचिनो " सुष्टु जानामि. ततोम हापद्मप्रेरितोऽसौ सैन्यवृतो गतो निपुणोपायेन च दुर्ग भक्त्वा सिंहबलो बद्ध आनीतश्च महापद्मांतिके. महापद्मनोक्तं नमुचे! यत्तवेष्टं तन्मार्गय ? नमुचिनोक्तं सांप्रतं वरः कोशेऽस्तु, अवमरे मार्गयिष्यामि. एवं यौवराज्यं पालयतो महापद्मस्य कियान कालो गतः. रात्रीनो चोरनी पेठे छानो मानो एकलोन मुनिवध करवा आव्यो तेने देवताए धंभाव्या. पभाते ते आश्चर्य जाइ राजाये For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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