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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययन मृत्रम् ॥१०२९॥ DAD भाषांतर अध्य०१८ कृते स्वामी योजनगामिना शब्देन देशनां चकार. तद्देशनां श्रुत्वा केऽपि सुश्रावका जाताः, केपि च प्रवजिता:. तदानीं कुंभभूपः प्रवज्य प्रथमो गणधरो जाना. अरनाथस्य षष्टिसहस्राः साधवो जाना:. साध्व्यः स्वामिनस्तावत्प्रमाणा एवं जानाः, श्रावकाश्चतुरशीनिसहस्राधिकलक्षमाना यभुवुः, श्राविकाश्चतुरशीतिमहस्राधिकलक्षत्रयमाना बभुवुः. मर्वायुः चतुरशीनिसहस्रवर्षाणि भुक्त्वा मम्मेतशैलशिखरे मासिकानशनेन भगवान्निवतः देयनिर्वागोत्मबो भृशं कृतः, इत्यरचक्रवर्तिदृष्टांतः. ७. देवोए परिवारिन आ कुमार वयः अवस्था तथा गुणोथी वृद्धि पामता गया. एकवीश हजार वर्ष व्यतीत यया पछी अर कुमारने पिताए राज्य दी). ते पछी एकवीश हजार वर्ष व्यतीत पर्यन्त राज्य भोगव्या पछो तेना शस्त्रभंडारमा चक्ररत्न समुत्पन्न थयु ते रडे भरतक्षेत्रनु प्रसाधन करी एकवोश हजार वर्ष पर्यन्त चक्रवर्तिपद भोगव्यु, जो के स्वामी पोते स्वयंयुद्ध हता तथापि लोकांतिक देवोए बोधित कर्या त्यारे वार्षिक दान दइ चोसठ सुरेन्द्रोए सेवित वैजयंती नामनी शिविका=पालखी मां चढीने सहस्र राजा श्रीए सहित सहसाम्रवनमा जड पत्रजित थया तदनन्तर चार ज्ञानसंपन्न एवा ए मुनि त्रण वर्ष मुधी छानांमानां विहार करीने पाछा फरी सहस्राम्र बनमा प्राप्त थया. त्यां शुक्र ध्यानवडे सकल पाप कर्मनो ध्वंस थतां केवळज्ञानने पाम्या. त्यारे देवोए समवसरण कर्य त्यां स्वामीए योजनगामी शब्दवढे देशना करी. ते देशना श्रवण करीने केटलाक तो सारा श्रावको थया: केटलाक पत्रजित दीक्षित साधु थया, आ वखते कुम्भभूप प्रज्या लइने प्रथम गणधर धया, अरनाथस्वामीने साठ हजार साधुओ थया अने तेटलीज एटले साठ हजार साध्वीओ थइ तथा एक लाख चोराशी हजार श्रावको थया, अने त्रण लाख चोरासी हजार श्रावि For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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