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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययन सूत्रम् ॥९८८॥ भाषांतर अध्य०१८ ॥९८८॥ पुत्रीओने दीठी. आ कन्याओये कुमार तरफ स्नेहा दृष्टिथी जोयुं त्यारे कुमारे विचार्य के " आ क्यांधी आवेल छे ? तेमनुं स्वरूप पूर्छ " आम धारीने कुमारे तेओनी पासे जइ मधुरवाणीथी पूछ्यु के-तमे बधी क्याथी आवो छो ? अने आ शून्य शरण्यने शा माटे शोभाब्यु छ ?' तेओए का के-" हे महाभाग ! अहींथी थाई दूर प्रियसंगमा नामनी अमारी निवासस्थानभूत नगरी है, नमे पण त्यां आवो " आटलं वाली एक दासीने चीध्यु ते दासीए मार्ग देखाड्यो तेथी कुमार ते नगरीमां गया. त्यां नांजर लोको तेने राजभवनमा लइ गया. ते नगरीना स्वामी भानुवेग राजाए तेने दीठा, अभ्युत्थान आदिक सत्कार करी राजाए का के-"हे महाभाग ! तमे आ मारी आठ कन्याओना वर थाओ, कारण के पूर्व अत्रे आवेला एक अचिौली नामना मुनिए भविष्यवाणीथी का हतुं के-जे असिताक्ष यक्षने जीतशे ते आ आठे कन्याओनो भर्ता थशे. माटे हवे आ आठने तमे परणो" कुमारे तेम करवा स्वीकायु एटले राजाए महोटा उत्सवपूर्वक विवाह कर्यो. कुमारने हाथे कंकण बंधन कयु अने परणीने कुमार ते रात्रे ए आठेने साथे लइ रतिभवनमा पलंग पर मृता, रात्रमा निद्रा उडी ने जुए छे तो पोते पृथ्वी उपर पडेल छे. 'आ शुं थयु' एम चितवन करता हाथ तरफ नजर करे छे तो हाथे बांधेलु कंकण न दीढुं. आथी अति खेदयुक्त मनथी कुमारे त्यांथी चालवा मांडथु तेटलामां पासेना भवननी अंदर करुण स्वरे रोती कोइ नारीनो स्वर सांभळ्यो. प्रविष्टस्तद्भवनांतः सप्तमभूमिमारूढः रूदंत्या तत्रैकया कन्यया भणितं, कुरुजनपदःभस्नलमृगांकसनत्कुमार ! त्वं भवांतरेऽपि मम भा भूया इति वारंवारं भणंति, पुनर्गाद रोदितुं प्रवृत्ता. ततो रुदत्यैव तयासनं दत्तं. तत्रोपविश्य कुमारस्तां पृष्टवान् . सनत्कुमारेण सह तव का संबंध: येन त्वं तमेवं स्मरसि. सा प्राह मम स मनोरथमात्रेण भा. For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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