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भाषांतर अध्ययन
॥४६॥
उत्तराध्य-IBE
करकंडुराजाए चंपापुरीना पनि दधिवाहन राजा उपर आज्ञा पत्र लक्ष्यो के-ा ब्राह्मण ने तमारा देशमानुं एक गाम आपनो.15 यन सत्रमा आज्ञापत्र लइ आवेला करकंडुराजाना दूत उपर दबिवाहन राजा क्रुद्ध थइ मनमां विस्मय पामना बोल्या के-'अरे ए मृग जेनो
म्लेच्छ बाल करकंड, सिंहसमा मारा जेवानी साथे विरोध करवा हिम्मत करे छे ? हे दत ! पारकी वस्तुना अभिलाष करवाथी तारा ॥४६७||
स्वामीए व्होरेला पातकनी शुद्धि, मारा खङ्गधारा तीर्थमा स्नान करवायी थइ रहेशे.
एवमुक्त्वा दधिवाहनेन तिरस्कृतः स दूतस्तत्र गत्वा करकंदुनृपाय यथार्थमवदत. करकंडनृपोऽपि प्रकामं क्रुद्धः स्वसैन्यपरिबृतश्चंपापुरसमीपे समायातः. दधिवाहनोऽपि पुरीदुर्ग सजीकृल्प स्वयं पहिनिस्ससार. उभयोः सन्ये सजी
भूते यावता योधु लग्ने तावता सा साध्वी तत्रागत्य करकंडुनृपतिप्रत्येवमूचेऽहो करकंदुनृप! त्वयाऽनुचितं पित्रा सह arl युद्ध किमारब्धं ? करकंडुनृपः प्राह हे महासति! कथमेष दधिवाहनोऽस्माकं पिता? साध्वी स्वस्वरूपमग्विलं तमचे.
___ आम कही करकंडुना दूतने दधिवाहन राजाए तरछोडी काठ्यो. आ हकीकत ते करकंडुनृपने यथावत् कही संभळावी ते उपरथी करकंडुनृपे अत्यंत क्रोधाविष्ट थइ पोनाना तमाम सैन्य सहित चंपापुरी समीपे आची पडाव नाख्यो. दधिवाहन राना पण पोतानी राजधानी चंपापुरीना रक्षण माटे किल्लामां बधो बंदोबस्त करी सैन्य सहित सज्ज थइ पोते बहार नीकळ्यो; युद्धारंभ थवानी तैयारी थइ तेटलामां पेली साध्वी (करकंडुनी माता) त्यां आवीने करकंडुनृपने कहेवा लागी के–'अहो करकंदुनृप ! तें आ तारा पितानी साथे आम अनुचित युद्ध केम आरंभ्यु?' त्यारे करकंडुनृप बोल्यो के-'हे महासति ! आ दधिवाहन राजा मारा पिता शी रीते?'
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