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________________ दीपिकानिमुक्तिश्च भ. ५ सू. ३४ ... कर्मभूमिसु मनुष्यादीनामायुः प्रमाणम् ६७७ हरिवासेहिं, पंचहिं रम्मगवासेहिं, पंचहिं एरण्णवएहिं, पंचहिं देवकुरुहिं पंचहिं उत्तरकुरुहि सेत्तं अकम्मभूमगा--' इति । अथ किं तावत् कर्मभूमयः १ कर्मभूमयः पञ्चदशविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पञ्चभिर्भरतैः, पञ्चभिरैरवतैः पञ्चभिर्महाविदेहैः, । अथ किं तावद् अकर्मभूमयः ? अकर्मभूमय स्त्रिंशद् विधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा-पञ्चभिर्हिमवतैः, पञ्चभिर्ह रिवर्षे पञ्चभीरम्यकवः, पञ्चभिर्हरण्यवतैः, पञ्चभिर्देवकुरुभिः, पञ्चभिरुत्तरकुरुभिः ता एता अकर्मभूमयः इति ॥३३॥ मूलसूत्रम्-"तत्थ मणुस्साणं तिरिक्खनोणियाण य ठिई तिण्णि पलिओवमाई अंतोमुहुत्तं, उक्कोसजहण्णिया-" ॥३४॥ छाया --- "तत्र-मनुष्याणां तिर्यग्योनिकानाञ्च स्थिति स्त्रीणि पल्योपमानि अन्तर्मुहू तम्, उत्कृष्टजघन्यिका-" ॥३४॥ तत्त्वार्थदीपिका--पूर्व जम्बूद्वीपादि सार्धद्वयद्वोपस्य भरतादिक्षेत्रेषु मनुष्याणामुत्पत्तिः प्ररूपिता, सम्प्रति-तासु भूमिषु मनुष्याणां पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाञ्च कियती स्थितिरायुः प्रमाणरूपा भवतीति जिज्ञासायामाह-"तत्थ मणुस्साणं तिरिक्खजोणियाणं य ठिई तिणि पलिओवमाइं अंतो मुहुत्तं उक्कोसजहणिया -" इति । तत्र तासु पूर्वोक्तासु भरतादिभूमिषु मनुष्याणां तिर्यग्योनिकानाञ्च गर्भव्युत्क्रान्तिकचतुप्पद स्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाञ्चेत्यर्थः स्थितिरायुः परिमाणरूपा, उत्कृष्टेन पल्योपमानि, जघन्येन चाऽन्तर्मुहूर्त भवतीतिभावः ॥३४॥ प्रश्न-कर्मभूमियाँ कितने प्रकार की है ? उत्तर कर्मभूमियाँ पन्द्रह प्रकार की हैं-पाँच भरत, पाँच ऐरवत और पाँच महाविदेह । प्रश्न- अकर्मभूमियाँ कितने प्रकार की हैं ? उत्तर-अकर्मभूमियाँ तीस प्रकार की हैं-पाँच हैमवत, पाँच हरिवर्ष, पाँच रम्यकवर्ष , पांच हैरण्यवत, पांच देवकुरु, और पाँच उत्तरकुरु । ये अकर्मभूमियां हैं । ॥ ३३ ॥ 'तत्थ मणुस्साणं' इत्यादि । सू. ३४ सूत्रार्थ-भरत आदि क्षेत्रों में मनुष्यों और तिर्यचों को स्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है ।। ३४ ॥ तत्वार्थदीपिका--इससे पहले जम्बूद्वीप आदि अढाई द्वीपों में विद्यमान भरत आदि क्षेत्रों में मनुष्यों की उत्पत्ति की प्ररूपणा की गई है। अब इन क्षेत्रों के मनुष्यों और पंचेन्द्रिय तिर्यचों की आयु कितनी होती है, इस जिज्ञासा का समाधान करते हैं पूर्वोक्त भरत आदि क्षेत्रों में मनुष्यों की और गर्भज चतुष्पद स्थलचर तिर्यंचों की आयु प्रमाण रूप स्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की होती है ॥३४॥
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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