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________________ U तत्वार्थसूत्रे धातकीखण्डे पश्चिमार्धे खलु मन्दरस्य पर्वतस्य - उत्तरदक्षिण स्वष्टु- द्वौ वर्षो प्रज्ञप्तौ, बहुसम - तुल्यौ यावद - भरतश्चैव - ऐरवतश्चैव.... इत्यादि । ततश्वा तत्रैव स्थानाने २ -स्थाने ३-उद्देशके ९३-सूत्रे चोक्तम्- "पुक्खरवरदीवड्ढे पुरत्थिमद्धेणं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं दो वासा पण्णत्ता, बहुसमतुल्ला जाव-भरहे चैव, एखए चैम, तहेब जाव-दो कुडाओ पण्णत्ता-" इति । पुष्करवरद्वीपार्धे पौरस्त्यार्थे खलु मन्दरस्य पर्वतस्योत्तरदक्षिणे खलु द्वौ वर्षो प्रज्ञप्तौ, बहुसमतुल्य यावद् - भरतश्चैव, ऐरवतश्चैव तथैव यावद् द्वौ कुरू प्रज्ञप्तौ - इति ॥३१॥ 'मूलसूत्र - 'माणुसुत्तराओ पुव्वं मणुआ ते दुविहा आरिया मिलक्खू य--" ॥ ३२ ॥ छोया - " मानुषोत्तरात्पूर्वमनुष्याः, ते द्विविधाः, आर्या- म्लेच्छाश्च - "|३२|| तत्त्वार्थदीपिका - पूर्व धातकीखण्डे पुष्कारार्धेच द्वौ द्वौ भरतादिवर्षो हिमवदादिवर्षधरपर्वतौ च प्ररूपितौ, तत्र - सम्पूर्ण पुष्करद्वीपमनुक्त्वा पुष्करार्धे एव तेषां द्विरावृत्तत्वाभिधानेकारणमाह-- “माणुमुत्तराओ पुव्वं मणुआ, ते दुविहा आरिया मिलक्खूय – "इति । मानुषोत्तरात् पुष्करद्वीपबहु मध्यभागवर्तिनो मानुषोत्तर शैलात् पूर्वमेव मनुष्याः सन्ति, न ततो बहिर्भागे, तथाच मानुषोत्तर शैलेन पुष्करद्वीपस्य विभक्तार्धत्वात् तस्य पुष्करद्वीपस्य पूर्वार्द्धेष्वेव मनुष्या भवन्ति, न तु तस्य बहिरर्धे इति फलितम् । ते मनुष्या द्विविधाः द्विप्रका रकाः सन्ति, आर्याश्च म्लेच्छाश्चेति भावः ॥ ३२॥ हैं, वे हैं भरत और ऐरबत, इत्यादि.... धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध में मेरुपर्वत से उत्तर और दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गए हैं, जो बिल्कुल एक समान हैं, वे हैं भरत और ऐरवत; इत्यादि । आगे स्थानांगसूत्र में ही दूसरे स्थान के तीसरे उद्देशक के सूत्र ९३ में कहा है'पुष्कर वर द्वीप के पूर्वार्ध भाग में मेरुपर्वत से उत्तर दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गए हैं, जो बिल्कुल एक जैसे हैं, वे हैं - भरत और ऐरवत । इत्यादि सब पूर्ववत् ही कह लेना चाहिए यावत् दो कुरु कहे गए हैं' ॥ ३१ ॥ 'माणुसुत्तराओ धुव्वं' इत्यादि सू० ३२ सूत्रार्थ - मनुष्य मानुषोत्तर पर्वत से पहले-पहले ही रहते हैं और वे दो प्रकार के होते हैं - आर्य और म्लेच्छ ॥३२॥ तत्वार्थदीपिका - इससे पूर्व धातकीखण्ड और पुष्करार्ध द्वीप में दो-दो भरत आदि क्षेत्र और दो-दो हिमवन्त आदि पर्वत हैं, यह प्रतिपादन किया गया है । मगर सम्पूर्ण पुष्कर द्वीप में भरत आदि क्षेत्रों का तथा हिमवन्त आदि पर्वतों का कथन न करके 'पुष्करार्ध' में जो कथन किया गया है, इसका कारण क्या है ? यह बतलाने के लिए कहते हैं । पुष्कर द्वोप के बीचों-बीच स्थित मानुषोत्तर पर्वत से पहले-पहले ही मनुष्यों का बास है उससे बाहर मनुष्य नहीं होते, मानुषोत्तर पर्वत के द्वारा पुष्कर द्वीप के दो विभाग हो गए
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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