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________________ मंपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू. ३१ . धातखण्डे-पुष्कराः च द्वौ २ भरतादिक्षेत्रः OR तत्परिक्षेपी कालोदः समुद्रः अष्टयोजनशतसहस्रबलथयिष्कम्भो वर्तते, अत्र द्वौ द्वौ भन्तादिवर्षों स्तः । कालोदपरिक्षेपी खलु पुष्करद्वीपः षोडशयोजनशतसहस्रवलयविष्कम्भो वर्तते । एवं-जम्बूद्वीपापेक्षया पुष्कराधे च-द्वौ मरतवर्षी द्वौ हिमवन्तौ च, द्वौ हैमवतौ-द्वौ महाहिमवन्तौ च, द्वौ हरिवर्षों द्वौ निषधपर्वतौ च, द्वौ महाविदेहौ-द्वौ नीलवन्तौ च, द्वौ रम्यकपर्क रुक्मिपर्वतौ च, द्वौ हैरण्यवतौ-द्वौ शिखरिपर्वतौ च, द्वौ-ऐरवतौ च वर्तेते, द्विसंख्यकाः- देवकुरवः द्विसंख्यका उत्तरकुरवश्च सन्ति । एवं यथा धातकी खण्डे हिमवदादीनां विष्कम्भउक्त स्तथापुष्करार्धेऽपि तेषां षण्णां वर्षधराणां विष्कम्भोऽवसेयः । इष्वाकारौ मन्दरौ च द्वौ पुष्कारार्धेऽपि वर्तेते । ___ यत्र जम्बूद्वीपे जम्बूवृक्ष स्तत्र-पुष्कर द्वीपे पुष्करवृक्षः सपरिवारः स्थितः, अतएव-तस्य द्वीपस्य पुष्करद्वीप नाम रूढं प्रतीतम् , मानुषोत्तर शैलेन च विभक्तार्धत्वात् पुष्कराईसंज्ञा बोध्या । उक्तञ्च स्थानाङ्गे २-स्थाने ३--उद्देशके ९२-सूत्रे-"धायइखण्डे दीवे पुरच्छिमद्धण मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं दो वासा षण्णता, बहुसमतुल्ला जाव भरहेचेब, एरवएचेव.... धायइखंडदीवे पच्चत्थिमद्धेणं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणेणं दो वासा पण्णत्ता, बहुसमतुल्ला जाव-भरहेचेव एरवए चेव इच्चाइ -'' इति । धातकीखण्डे द्वीपे पौरस्त्याः खलु मन्दरस्य पर्वतस्यो-त्तरदक्षिणे खलु-द्वौ वषौ प्रज्ञप्ती, बहुतुल्यौ यावद् भरतश्चैव-ऐरवतश्चैव.... । . खंड द्वीप को चारो ओर से घेरे हुए कालोदसमुद्र है । उसका विष्कंभ आठ लाख योजन आठ लाख योजन का है उसमें भी दो-दो भरतआदि क्षेत्र हैं । कालोद समुद्र के चहुंओर पुष्कर द्वीप है । उसका विस्तार सोलह लाख योजन है। इस प्रकार जम्बूद्वीपकी अपेक्षा पुष्कारार्ध क्षेत्र में दो भरतक्षेत्र हैं, दो हिमवन्त पर्वत है, दो हैमवत क्षेत्र हैं, दो महाहिमवान् पर्वत हैं, दो हरिवर्ष हैं, दो निषध पर्वत हैं, दों महाविदेह हैं, दो नीलवन्त पर्वत हैं, दो - रम्यकवर्ष हैं, दो रुक्मिपर्वत हैं, दो हैरण्यवत क्षेत्र हैं, दो शिखरी पर्वत हैं और दो ऐवत क्षेत्र हैं । दो देवकुरु और दो उत्तस्कुरु हैं । धातकी खंड द्वीप में हिमवन्त आदि पवतों का विस्तार जितना कहा गया है, उतना ही विस्तार पुष्कराध द्वीप में भी समझना चाहिए । जैसे धातकीखंड द्वीप में दो इष्वाकार पर्वत और दो मन्दर पर्वत हैं, उसी प्रकार पुष्करा) द्वीप में भी हैं । जम्बूद्वीप में जिस स्थल पर जम्बूवृक्ष है, पुष्करद्वीप में उस स्थल पर पुष्करनामक वृक्ष सपरिवार स्थित है । इसी वृक्ष के कारण उसका नाम पुष्करद्वीप रूढ़ है । पुष्करद्वीप के मध्य में मानुषोत्तर पर्वत होने से उसके आधे-आधे दो भाग हो गये हैं। इस कारण उसे पुष्करार्ध कहते हैं। - स्थानांसूत्र के दूसरे स्थान के तीसरे उद्देशक में, सूत्र ९२ में कहा है- 'धातकीखंड द्वीप में पूर्वार्ध में मेरुपर्वतः के उत्तर दक्षिण में दो वर्ष (क्षेत्र) कहे हैं, जो विल्कुल एक समान
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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