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________________ तत्त्वार्यता वासस्स विक्खंभे पंचछब्बीसे जोयणसयाई छच्च एगणवीसइभाया-" इति भरतवर्षस्य-भरतक्षेत्रस्य विष्कम्भो-बाहल्यं विस्तारः खलु योजनानां पञ्चशतानि षड्विंशतिः षट्च एकोनविंशतिभागा सन्ति । एतावता षडविंशत्यधिक पञ्चशतयोजनानि षट्चैकोनविंशतिभामा योजनस्य तावद् भरतवर्षस्य विस्तार इति फलितम् । उक्तञ्च जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ १२ सूत्रे "जबूद्दीवे दीवे भरहेणामं वासे जंबूद्दीवदीवणउयसयभागे पंचछच्चीसे जोयणसए छच्च एग्रणवीसइभाए जोयणस्स बिक्खंभेणं-" इति । जम्बूद्वीपे द्वीपे भरतो नामवर्षः जम्बूद्वीप द्वीपनवतिशतभागः पञ्च षड्विंशतिः योजनशतानि षट् च एकोनविशतिभागाः योजनस्य विष्कम्भेण-" इति । एवञ्च-जम्बूद्वीपस्य लक्षयोजनप्रमाणायामविष्कम्भतया तस्य नवतिशतभागविष्कम्भो भरतवर्षस्य षइविंशत्यधिकपञ्चशतयोजनषडेकोनविंशतिभागा इति ॥२६॥ मूलसूत्रम् - "भरहदुगुणविक्खंभाः चुल्लहेमवंताइ विदेहंता वासहरवासा-"॥ छाया--"भरतद्विगुण द्विगुणविष्कम्भाः क्षुल्ल हिमवदादिविदेहान्ता वर्षधरवर्षाः" । तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे-भरतवर्षस्य जम्बूद्वीपान्तवैर्तिनो विष्कम्भस्वरूपं निरूपितम् , सम्प्रति क्षुल्लहिमवदादिविदेहान्तानां वर्षधराणां वर्षाणाञ्च विष्कम्भस्वरूपं प्ररूपयितुमाह "भरहदुगुण-" इत्यादि । भरतद्विगुणद्विगुणविष्कम्भाः-भरतवर्षस्य द्विगुणद्विगुणाः विष्कम्भाः विस्तारा येषां ते भरतद्विगुणद्विगुणविष्कम्भाः क्षुल्लहिमवदादि-विदेहान्ताः, क्षुल्लहिमवद्-१ हैमवत-२ महाहिमवत्-३ हरिवर्ष-४ निषध-५ महाविदेहाः वर्षधरवर्षाः-प्रथमअब भरत क्षेत्र के विस्तार की प्ररूपणा करते हैं . भरतवर्ष अर्थात् भरतक्षेत्र का विस्तार पाँच सौ छब्बीस योजन और एक योजन के उन्नीस भाग में से छह भाग (५२६,६) है। जम्पूद्वीपप्रज्ञप्ति के बारहवें सूत्र में कहा हैं—'जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत नामक वर्ष-क्षेत्र .....उसका विस्तार ५२६६. योजन है । तात्पर्य यह है कि एक लाख योजन ताबे चौड़े जम्बूद्वीप का ५२६५ वां भाग भरतक्षेत्र का विस्तार है ॥२६॥ . 'भरहदुगुण विक्खंभा' इत्यादि । सूत्रार्थ-क्षुद्रहिमवात् पर्वत से लेकर विदेह क्षेत्र पर्यन्त पर्वतों और क्षेत्रों का विस्तार दुगुना-दुगुना है ॥२७॥ र तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्र में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र का विस्तार निरूपण किया है। चुल्ल हिमवन्त पर्वत से विदेह क्षेत्र तक के पर्वतों और क्षेत्रों का विस्तार बताते हैंभरत क्षेत्र से आगे के पर्वतों और क्षेत्रों का विस्तार उत्तरोत्तर दुगुना-दुगुना है । भरत क्षेत्र से
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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