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________________ तत्वार्यसूत्रे एवं रीत्या-तद्विगुणत तद्विगुणतयोत्तरोत्तरं क्रमश स्तिगिच्छ-केसरि-पुण्डरीक-महापुण्डरीकहूंदानामपि स्वयमायामविस्ताराः ऊहनीयाः अवगाहस्तु-सर्वेषां हृदानां दशयोजनान्येवाऽवसेयः । उक्तञ्च जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ महापद्महूदाधिकारे-८० सूत्रे-"महाहिमवंतस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ नं एगे महापउमद्वहे णामं दहे पण्णत्ते दो जोयणसहस्साई आयामेणं एगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं दसजोयणाई उव्वेहेणं अच्छे रययामयकूले एवं आयामविक्खंभविहणा जा चेव पउमदहस्स वत्तव्वया सा चेव णेयचा पउमप्पमाणं दो जोयणाई अट्ठो जाव महापउमद्दहबण्णाभाई हिरीअ एत्थ देवीजाव पलिओवमट्टिइया परिवसइ” इति ___ महाहिमवतो बहुमध्यदेशभागे अत्र खलु एको महापद्महृदो नाम हृदः प्रज्ञप्तः, द्वे योजनसहस्रआयामेन, एकं योजनसहस्रं विष्कम्भेण-दशयोजनानि-उद्वेधेन, अच्छो रत्नमयकूलः एवम्आयामविष्कम्भविहीना या चैव पद्महूदस्य वक्तव्यता-सा चैव ज्ञातव्या पनप्रमाणं द्वे योजने, अर्थो यावद महापद्महदवर्णाभानि, हीश्चात्र देवी यावत्-पल्योपमस्थितिका परिवसति, इति तदने चोक्तम्-जम्बूप्रज्ञप्तौ षड्हूदाधिकारे ८३-सूत्रतः ११०-सूत्रपर्यन्तम्-,तिगिछद्दहेपामं दहे पण्णत्ते....चत्तारि जोयणसहस्साई आयामेणं, दो जोयणसहस्साइं विक्खं भेचं, दसजोयणाई उन्वेहेणं....धिइअ एत्थ देवी पलिओवमहिइया परिवसइ-" इति । तिगिच्छकहदो नामहूदः प्रज्ञप्तः....चत्वारि योजनसहनाणि आयामेन, द्वे योजनसहरी विष्कम्भेण. दशयोजनानि उद्वेधेन, धृतिश्चात्र देवी पल्योपमस्थितिका परिवसति इति । तेषु च षट्सु षुष्करेषु उत्तरोत्तरविशालेषु कर्णिकामध्यदेशनिवेशिनः शरत्पूर्णिमा पूर्णचन्द्र चन्द्रिकाद्युतिहराः क्रोशायामाः अर्धक्रोशविस्ताशः देशोनक्रोशोत्सेधाः प्रासादाः षड् विलसन्ति, अवगाह सभी हृदों का दस योजन ही है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के महापद्म हूद के प्रकरण में सूत्र ८० में कहा है-'महाहिमवंत पर्वत के ठीक बीचोंबीच एक महापम हृद नामक हृद है, उसकी लम्बाई दो हजार योजन की, चौड़ाई एक हजार की, और गहराई दस हजार योजन की कही गई है। वह स्वच्छ है, उसके किनारे रजतमय हैं । इस प्रकार लम्बाई-चौडाई को छोड़ कर शेष वर्णन पाहूद के समान ही समझ लेना चाहिए। उसमें स्थित पद्म का प्रमाण दो योजन है अर्थात् यावत् महापमहूद के वर्ण के समान........उस कमल में एक पल्योपम की स्थिति वाली ही देवी निवास करती है । ____ आगे जम्बूद्वीप्रज्ञप्ति में छह हदों के प्रकरण में सूत्र ८३से ११० पर्यन्त में कहा है-तिगिच्छ हद नामक हृद है जो चार हजार योजन लम्बा है, दो हजार योजन चौड़ा है और दस हजार पोजन गहरा है । यहाँ धृति नाम की देवी निवास करती है जिसकी स्थिति एक पल्योपम की है। उत्तरोत्तर विशाल उन छहों पुष्करों की कर्णिका के मध्य भाग में बने हुए, शरत्पूर्णिमा के चन्द्रमा की चांदनी की कान्ति को भी हरण करने वाले, एक कोस लम्बे, अर्ध कोस विस्तार
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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