SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 650
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू० २४ वर्षधरपर्वतानां वर्णादिनिरूपणम् ६७३ ___ उक्तञ्च–जम्बूप्रज्ञप्तौ पद्महदाधिकारे ७३-सूत्रे-'तस्स पउमदहस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ महं एगे पउमे पण्णत्ते, जोयणं आयामविक्खंभेणं, अद्धजोयणं-दसजोयणाई उव्वेहेणं दो कोसे ऊसिए जलताओ साइरेगाई दसजोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ता-" इति । तस्य पाहदस्य बहुमध्यदेशभागे--अत्र महद् एकं पनं प्रज्ञप्तम्, योजनमायामविष्कम्भेणअर्धयोजनं बाहल्येन दशयोजनानि उद्वेघेन द्वौ क्रोशौ जलान्तात्, सातिरेकाणि दशयोजनानि सर्वाग्रेण प्रज्ञप्तानि, इति । पाहदापेक्षया तन्मध्यवर्तिपुष्करापेक्षया च-द्विगुणद्विगुणा हृदाः पुष्कराणि चाऽवगन्तव्यानि । तथाच-पद्महूदापेक्षया-द्विगुणायामविस्तारः खलु महापद्महूदः । महापद्महूदापेक्षया-द्विगुणायामविस्तार स्तावत्-तिगिच्छहूदः तिगिच्छदापेक्षया द्विगुणायामविष्कम्भश्च केसरि हृदः केसरिहदापेक्षया द्विगुणायामविस्तारो पुण्डरीकहूदः । पुण्डरीकहूदापेक्षया-द्विगुणायामविस्तारः पुन-महापुण्डरीकहृदो बर्तते । - एवं-पाहूदमध्यवर्तिपुष्करापेक्षया द्विगुणं पुष्करं महापमहूदे वर्तते, तत्पुष्करापेक्षया-द्विगुणं पुष्करं तिगिच्छहूदे विलसति तत्पुष्करापेक्षया-द्विगुणं पुष्करं केसरिहूदे वर्तते, तत्पुष्करापेक्षया द्विगुणं पुष्करं पुण्डरीकहदे विलसति, । तथाच-पद्महृदस्य योजनसहस्रायामतया-पञ्चशतयोजनविस्तारतयोत्तरत्वेन तद् द्विगुणो महापद्महृदः । सहस्रयोजनायामः सहस्रयोजनविस्तारश्च भवति । ___ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र ७३ पद्महूद के अधिकार में कहा है- उस पद्मद के बिलकुल मध्य भाग में एक विशाल पद्म कहा गया है । वह एक योजन लम्बा-चौड़ा है, आधा योजन मोटा है और दस योजन गहरा है, जल से दो कोस ऊँचा है । उसका समग्र परिमाण कुछ अधिक दस योजन का कहा गया है। पाहद का जो परिमाण कहा गया है, उसकी अपेक्षा महापमहूद का और महापद्मद की अपेक्षा तिगिच्छ हूद का परिमाण दुगुना-दुगुना है । इसी प्रकार उनमें स्थित कमलों का परिमाण भी दुगुना दुगुना है, जो परिमाण दक्षिण दिशा के इन हदों और पुष्करों का है, वही उत्तर दिशा के हृदों और कमलों का है । जैसे तिगिच्छ के समान केसरी हूद का, महापद्म के बराबर पुण्डरोक हृद का और पद्महूद के समान महापुण्डरीक हूद का आयाम विष्कम है । इनमें स्थित कमलों के विषय में भी ऐसा ही समझना चाहिए । तात्पर्य यह है कि पद्महूद के मध्य में स्थित पुष्कर की अपेक्षा महापद्महद में स्थित पुष्कर दुगुना है, महापद्म हद के पुष्कर की अपेक्षा तिगिच्छ हद पुष्कर दुगुना हैं। तत्पश्चात् उत्तर में केसरी हूद का पुष्कर तिगिच्छहूद के पुरष्कर के बराबर, पुण्डरीक हुद का पुष्कर महापद्म हद के पुष्कर के बराबर और महापुण्डरी हृद का पुष्कर पद्म हूद के पुष्कर बराबर है।
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy