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________________ तत्त्वार्थसूत्रे छाया--अथ कस्तावत् पारिणामिकः ? द्विविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा-सादिपारिणामिकश्च अथ कस्तावत् सादिपारिणाभिकः ? अनेकविधः तद्यथा उल्का पाताः दिग्दाहाः गर्जितम् विद्युन्निर्धाताः जूपदा यक्षादित्याः धूमिका महिका रज उद्धाताः चन्द्रोपरागाः सूर्योपरागाः चन्द्रपरिवेषाः सूर्यपरिवेषाः प्रतिचन्द्राः प्रतिसूर्याः इन्द्रधनुः उदकमत्स्याः कपिहसितम् अमोध वर्षा वर्षधराः ग्रामा नगराणि गृहाः पर्वताः पातालाः भवनानि निरयाः रत्नप्रभाः शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा पङ्कप्रभा धूमप्रभा तमप्रभा तमतमप्रभा सौधर्मो यावत् अच्युतो अवेयकः अनुत्तरः ईषत्प्रभा परमाणु पुद्गलाः द्विप्रदेशिकः स एष सादिपारिणामिकः अथ कस्तावद् अनादिपारिणामिकः ? धर्मास्तिकायः अधर्मास्तिकायः अद्धा समयः लोकः अलोकः भवसिद्धिकाः अभवसिद्धिकाः स एषः अनादिपारिणामिकः स एष पारिणामिकः इति । सान्निपातिकस्तावत् षष्ठौ भवो बहुविधो भवति सहैव युगपदेकस्मिन् जीवात्मनि निपतन्तीतिसन्निपाताः त एव संनिपातिका उच्यन्ते तथा च पूर्वोक्तानमिवौदायिकोपशमिकादीनां भावानां यथा योगं द्विकादिसंयोगेन सान्निपातिको भावो निष्पद्यते तत्र तस्यबहुभेदसत्त्वेपि मुख्यतया पञ्चदशभेदाः प्रदर्यन्ते युगमदेकस्मिन् जीवे निपतन्ति तत्र नारकतिर्यग्योनिक भनुष्यदेव गतिभेदेन चैत चत्वारो भेदाः ४ एवमेवऔदयिकौपशामिकक्षायोपशमिकपारिणामिकाः क्वचिद् कृतत्रिपुञ्जोपशमसम्यक्त्वसभावाद् गतिभेदेनैव चत्वारोभेदा ४ पुनरौदयिक क्षायिक क्षयोपशमिकपारिणा नारक, निर्यग्योनिक, मनुष्य और देवगति के भेद से चार भेद होते हैं। (४), इसी प्रकार औदयिक, औपशमिक क्षायोपशमिक, पारिणामिक, कहीं तीनपुंज न करने वाले जीव के उपनाम सभ्य का सद्भाव डोने से, गति के भेद से चार भेद हो जाते हैं (४) औदयिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक' कहीं क्षायिक का सद्भाव होने से श्रेणिक आदि के समान गतिभेद से होते हैं। औदयिक, औपशमिक' क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक का एक भेद मनुष्यगति में उपनामश्रेणी के सद्भाव में ही होता है। यह भाव दर्शनसप्तक से रहति सम्पूर्ण मोहनीय कर्म के उपशम से, शेष कर्मों के क्षयोपशम आदि होने पर होता है (१) इसी प्रकार । औदयिक, क्षायिक और पारिणामिक का एक ही भंग होता है, जैसे केवली में औदयिक मनुष्यत्व, क्षायिक केवलज्ञान और पारिणामिक भाव जीवत्व पाया जाता है । (१) इसी प्रकार क्षायिक और पारिणामिक का एक अंग है, जैसे सिद्ध में केवलज्ञान सम्यक्त्व आदि क्षायिक तथा जीवत्व पारिणामिक भाव होता है । इसी भाँति मत्यभेद भी समझ लेना चाहिए। यहाँ यह बात समझने योग्य है - औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक; ये तीन भाव कर्म के विधात से उत्पन्न होते हैं, जैसे बहुत-सी रज के समूह का विधात होने पर सूर्य की किरणों का समूह उत्पन्न होता है । वह विधात दो प्रकार का है-स्वीवीर्य की अपेक्षा से कर्म
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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