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________________ दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० १ जीवस्य षड्भावनिरूपणम् ५७ पारिणामिको भावास्तावत् त्रिविधः जीवत्वभव्यत्वाभव्यत्वभेदात् तत्र जीवभावे जीवत्वम् जीव एव जीवत्वं वा असंख्येयप्रदेशं चैतन्यमित्यर्थः भव्या सिद्धिर्यस्यासौ भव्यः, भव्य एवं भव्यत्वम् सिद्धिगमनायोग्यः कदाचिदपि यो न सिद्धिं प्राप्स्यति सः अभव्यः अभव्य एव अभव्यत्वम् एते त्रयोऽपि भावा: जीवस्य स्वाभाविका एव सन्ति न तु कर्मकृता इत्यर्थः जीवत्वभव्यत्वाभव्यत्य रूपेण स्वभावत एव आत्मापरिणमनशीलो वर्तते इति भावः यद्यपि अस्तित्वाऽन्यत्व - कर्तृत्व- भो क्तत्वगुणवत्त्वाऽसर्वगतत्वाऽनादिकर्मसन्तानबद्धप्रदेशवत्त्वाऽरूपत्व - नित्यत्वादयोऽपिजीवस्यानादिपारिणामिका भावाः सन्ति एवमन्येऽपि बहवो भावा अनुयोगद्वारसूत्रे षड्भावाधिकारे प्रतिपादिता सन्ति तथापि संक्षेपेणैव पारिणामिकभावस्य वर्णितत्वेन तत्रैव तेषां सर्वेषामपि अन्तर्भावात् तथा चोक्तम्- " से किं तं पारिणामिए । दुबिहे पण्णत्ते - तं जहा - साइ पारिणामिए अणाइ पारिणामि य से किं तं साइ पारिणामिए । अणेगविहे पण्णत्ते तं जहा - उक्कावाया दिसादाहागज्जियं विज्जूणिग्यायाजूवयाजक्खादित्ता धूमिआ महिआ रयुग्धाया चंदोवराग गाचंद परिवेसा सूरपरिवेसा पडिचंदा पडिसूरा इंदधणु अदगमच्छाकविहसिया अमोहा वासा वासधरा गामा णगरा घरा पव्वया पायाला भावणा निरयारयण पहा सक्करपहा वालुअा पंकप्पा धूमप्पा तमप्पा सोहम्मे जाव अच्चुए गेवेज्जे अणुत्तरे ईसिप्पभाए परमाणुपोग्गले दुपए सिए जाव अनंत पएसिए से तं साइपरिणामिए से परिणाम से किं तं अणाइपरिणामिए । धम्मत्थिकाए अधम्र्म्मात्थिकाए जीवत्थिकाए पुग्गलत्थकाए अद्धासमए लोए अलोए भलसिद्धिआ - अवसिद्धिआ से तं अणाइ परिणामिए " पारिणामिक भाव क्या है ? पारिणामिक भाव दो प्रकार का है——सादि पारिणामिक और अनादि पारिणामिक सादि पारिणामिक भाव क्या है ? वह अनेक प्रकार का है, यथा- उल्कापात, दिशादाह, गर्जना, विद्युत् - निर्धात, जूयदा, यक्षादित्य, धूमिका, भिहिका, रज उद्यात, चन्द्रग्रहण सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकमस्त्य, कपिहसित, अमोघवर्ष, वर्षधारा' गुम्म, नगर' गृह, पर्वत, पाताल, भवन, नरक, रत्नप्रभा, शर्कशप्रभा, वालुका प्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, नमःप्रभा, नमस्तः मप्रभा, सौधर्म यावत् अच्युत, ग्रैवेयक, अत्तजर विमान ईषप्राग्भारा पृथ्वी परमाणुपुद्गल द्विप्रदेशिकस्कंध यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कंध यह सब सादि पारिणामिक भाव हैं । अनादिपारिणामिक भाव क्या है ? धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय, आकशास्तिकाय जीवास्ति काय पुद्गलास्तिकाय अद्धासमय लोक अलोक भवासिद्धिक सब अनादि पारिणामिक भाव हैं । छठा भाव सान्निपातिक भी अनेक प्रकार का है। एक जीवात्मा में एक साथ उत्पन्न होने वाला मिला-जुला भाव सान्निपातिक भाव कहलाता है । यह सान्निपातिक भाव पूर्वोक्त औदयिक औपशमिक आदि भावों में से यथायोग्य दो तीन आदिके संयोग से बनता है । यद्यपि उसके भेद बहुत हैं फिर भी मुख्य रूप से यहाँ पन्द्रह प्रकार का दिखलाया जाता है - औद - far क्षायोपशमिक और पारिणामिक ये तीन भाव एक साथ एक जीव में उत्पन्न होते हैं । ८
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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