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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ. ५ सू. २२ जम्बूद्वीपगतसप्तक्षेत्रस्वरूपनिरूपणम् ६१ अनन्तप्रदेशाश्चतस्र एव सन्ति, ऊर्ध्वं पुनस्तानेव चतुरः प्रदेशान् मर्यादीकृत्यो-परिस्थितचतुः प्रदेशादिकाऽनुत्तरा विमलानामदिक् व्यपदिव्यते, एवमधस्तात् खलु तमोऽभिधाना-ऽधस्तना-ऽऽकाशप्रदेशचतुष्टयप्रवहो भवति, एताश्च-- दशदिशोऽनादिकालसन्निवेशिन्यो निश्चयनयाऽनुसारेणाऽनादिकालप्रसिद्धनामानश्चावगन्तव्याः । __उक्तञ्च स्थानाङ्गसूत्रे ७-स्थाने-"जम्बूद्दीवे सत्तवासा पण्णत्ता, तंजहा भरहे, एरवते हेमवते हेरण्णवते, हरिवासे, रम्मगवासे, महाविदेहे" इति । जंबूद्वीपे सप्त वर्षा प्रज्ञप्ताःतद्यथा-भरतम्-ऐरवतम्-हैमवतम्-हैरण्यवतम् हरिवर्षः रम्यकवर्षः-महाविदेहः, इति।। तत्र-भरतवर्षस्तावद् हिमाचलस्य दक्षिणदिग्भागावस्थितस्त्रयाणां समुद्राणाञ्च मध्येआरोपितचापाकृतिरस्ति वैताढयेन-गङ्गासिन्धुभ्याञ्च विभक्तः षट् खण्डः ।१ हैमवतबर्षस्तु-क्षुद्रहिमवत्त उत्तरतो महाहिमवतश्च दक्षिणतः पूर्वाऽपरसमुद्रयोर्मध्ये वर्तते ।२ हरिवर्षश्च-निषधस्य दक्षिणतो : महाहिमवत उत्तरतः पूर्वापर समुद्रयो रन्तराले वर्तते ।३ महाविदेहवर्षश्च-निषधस्योत्तरतो नीलस्य दक्षिणतः पूर्वापरसमुद्रयोरन्तरालवर्ती विद्यते ।४ स्वरूप निष्पन्न होता है; उनकी आदि तो है पर अन्त नहीं है । विदिशाएँ चार हैं और वे अनन्त प्रदेशों से निर्मित है। ऊर्ध्वदिशा भी उन्हीं चार प्रदेशों से उत्पन्न होती है । उसकी आदि ऊपर स्थित चार प्रदेशों से होती है। उसे अनुत्तरा-विमला दिशा भी कहते हैं । ___अधोदिशा का नाम तमस् है, वह नीचे के चार आकाश प्रदेशों से उत्पन्न हुई है। ये दशों दिशाएँ अनादिकालीन हैं और इनके नाम भी अनादिकाल से प्रसिद्ध हैं। यह निश्चयनय के अभिप्राय से समझना चाहिए । स्थानांगसूत्र के सातवें स्थान में कहा है-'जम्बूद्वीप में सात वर्ष-क्षेत्र कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-भरत, ऐरवत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष महाविदेह ।' । (१) भरतवर्ष हिमवान् पर्वत के दक्षिण में अवस्थित है । उसके दक्षिण, पश्चिम और पूर्व में तीनों ओर लवणसमुद्र है । वह धनुष के आकार का है। वैताड्य नामक पर्वत और गंगासिन्धु नामक दो महानदियों से विभाजित होने के कारण उसके छह खण्ड हो गए हैं। (२) हैमवतवर्ष-चुल्लहिमवान् पर्वत से उत्तर में और महाहिमवान् पर्वत से दक्षिण में हैमपतवर्ष है । उसके पूर्व और पश्चिम में लवणसमुद्र है। (३) हरिवर्ष-निषध पर्वत से दक्षिण में और महाहिमवान् पर्वत से उत्तर में स्थित है। इसके पूर्व और पश्चिम में लवणसमुद्र है । ____ (४) महाविदेहवर्ष-निषध पर्वत से उत्तर में और नीलपर्वत से दक्षिण में महाविदेह क्षेत्र है। इसके पूर्व और पश्चिम में भी लवणसमुद्र है।
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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