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________________ दोपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू. १७ नारकाणामायुः परिमाणरूपास्थितेखनिरूपणम् ६०९ मूलसूत्रम् --- "तेमुं नारगाणं उक्कोसेणं ठिई जीवाणं जहाकम-एग-ति-सत्तदस-सत्तरस-बावीस-तेत्तोसा सागरोवमा-" ॥१७॥ छाया-"तेषु नारकाणा मुत्कृष्टेन स्थितिर्जीवानां यथाक्रमम् --एक-त्रि-सप्तदश-सप्तदश-द्वा-विंशति-त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाः ॥१७॥ तत्वार्थदीपिका--पूर्वं तावन्नारकाणां-नरकाणाञ्च स्वरूपाणि प्ररूपितानि सम्प्रति--- तेषां नारकाणामायुः परिमाणरूपां स्थिति-परममुत्कृष्टां स्थितिं प्ररूपयितुमाह-"तेसुं नारगाणं" इत्यादि । तेषु पूर्वोक्तेषु नरकेषु रत्नप्रभादि सप्तपृथिवीरूपेषु नारकाणां-नरकजीवानाम् उत्कृष्टेन-उत्कर्षतः स्थितिः-आयुः-प्रमाणरूपा यथाक्रम-क्रममनतिक्रम्य यथाक्रमम्, रत्नप्रभादि पृथिवीक्रमानुसारेण-एक-त्रि-सप्त-दश-सप्तदश-द्वाविंशति-त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमाः भवन्ति । तथा च-रत्नप्रभायां नरकेषु नारकाणामुत्कृष्टा स्थितिरेकसागरोपमा भवति-१ शर्कराप्रभायां तेषामुकृष्टा स्थिति स्त्रिसागरोपमा-२ वालुकाप्रभायां नारकाणामुत्कर्षेण सप्तसागरोपमा स्थितिभवति-३ पङ्कप्रभायां तेषा मुत्कृष्टा स्थितिर्दश सागरोपमा भवति-४ धूमप्रभायां नारकाणाकापोत अग्नि जैसे रंग वाले, कठोर स्पर्श वाले दुस्सह और अशुभ होते हैं । नरकों की वेदनाएँ भी अशुभ ही होती हैं, इत्यादि ॥१६॥ सूत्रार्थ 'तेसुं नारगाणं उक्कोसेणं' इत्यादि ॥१७॥ उन नरकों में नारक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति यथाक्रम से एक, तीन, सात, दस, सतरह, वाईस और तेतीस सागरोपम की होती है ॥१७॥ तत्त्वार्थदीपिका-पहले नारक जीवों के तथा नरकों के स्वरूप का निरूपण किया गया है, अब उन नारक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति का अर्थात् आयु के परिमाण का निरूपण करते हैं पूर्वोक्त सात रत्नप्रभा पृथ्वी आदि स्वरूप वाले नरकों में निवास करने वाले नारक जीवों की उत्कृष्ट अर्थात् अधिक से अधिक स्थिति या आयु अनुक्रम से अर्थात् रत्नप्रभा आदि भूमियों के क्रम के अनुसार एक, तीन, सात, दस, सत्तरह, बाईस और तेतीस सागरोपम की होती है । इसका अनुक्रम इसप्रकार है- (१) रत्नप्रभा नामक भूमि में जो नरक हैं; वहाँ के नारकों की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है; अर्थात् पहली पृथ्वी के नारक अधिक से अधिक एक सागरोपम तक नारक अवस्था में वहाँ रहते हैं । (२) शर्कराप्रभा में नारकों की उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम की होती है । (३) वालुकाप्रभा में नारकों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम की होती है । (४) पंकप्रभामें नारकों की उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम को होती है । (५) धूमप्रभा में नारकों की उत्कृष्ट स्थिति सतरह सागरो
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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