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________________ तत्वार्यसूत्रे वासा:--तिर्यगूर्ध्वमधश्च सर्वतः--समन्तात् खलु अनन्तघोरभयङ्करतमसा सततव्याप्तान्धकाराः श्लेष्ममूत्रपुरीषस्रोतो मलशोणितवसा-मज्जा-मेदः-पूयलिप्ततलभागा भवन्ति । श्मशानभूमिरिय पूतिमांसकचा-ऽस्थिचर्मदन्तनखाच्छन्नभूमयः श्वान-शृगाल-मार्जार-नकुल-वृश्चिक सर्पमूषिकहस्त्यश्व गो महिषमानुषशवकोष्ठा-ऽशुभतरदुर्गन्धाश्च भवन्ति, अत्यन्त हृदय द्रावकतीव्रकरुणरुदितैर्दीनविक्लवैरातध्वनिभिर्विलापैचितैर्वाष्पसन्निदैर्गाढवेदनैः सन्तप्तोच्छ्वास निश्वासैरशान्तमुखरितकोलाहलभयत्रासजनकस्वनाश्च भवन्ति । ___नारकीयशरीराणि चा-ऽशुभनामकर्मोदयादशुभतराणि अङ्गोपाङ्गनिर्माणसंस्थानस्पर्श-रसगन्धवर्णस्वराणि हुण्डानि निर्द्धनाण्डजशरीराकृतीनि वर्तक (वटर) पक्षि शरीराकाराणि-अत्यन्तबीमत्सानि जुगुप्सा-जन कानि भवन्ति, यदवलोकनेन घृणा-भयञ्चोत्पद्यते परेषां जीवानाम् । अतएव तानि शरीराणि क्रूरकरुणबीभत्सा-ऽत्यन्तभयदर्शनानि तोत्रदुःखयातनापूर्णानि नित्याशुचीनि च भवन्ति । ता.न च शरीराणि रत्नप्रभादि सप्तपृथिवीषु क्रमशोऽधोऽधोऽशुभतराणि सन्ति । तेषाञ्च नारकाणां तानि शरीरामि द्विविधानि भवन्ति, भवधारणीयानि-उत्तरवैक्रियाणि च । तत्र च सप्तस्वपि पृथिवीषु भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्येनाऽशुलासंख्येयभागप्रमाणाः, तेषां नारकाणां भवति । वहाँ जो नरकावास हैं वे तिर्छ, ऊपर और नीचे सब ओर से अत्यन्त घोर और भयंकर अन्धकार से सदैव परिपूर्ण होते हैं। उनको लगभग श्लेष्म (कफ), मूत्र, विष्ठा, मल, रुधिर, चर्वी, मज्जा, मेद, एवं मवाद से लिप्त होते हैं। श्मशान भूमि के समान बदबूदार मांस, बाल, अस्थि, चर्म, दाँत नाखून आदि से वहाँ की भूमि व्याप्त रहती है। वहाँ ऐसी दुर्गन्ध आती रहती है जैसे मृतक कुत्ता, सियार, मार्जार, नकुल (न्यौला), बिच्छू, सर्प मूषिका हस्तो अश्व, गौ, भैस या मनुष्य का सड़ा शव हो । वहाँ अत्यन्त हो हृदयद्रावक, करुणाजनक रुदन की ध्वनि सुनाई देती है। नारक जीवों की आतध्वनि, विलाप, याचित शब्द सुनाई पड़ते है ! अश्रुओं से परिपूर्ण, गाढी वेदना से युक्त, संतापपूर्ण उच्छ्वास-निःश्वास का अशान्त एवं मुखरित कोलाहल मय, एवं त्रास जनक होता है । नारकीय जीवों के शरीर अशुभ नामकर्म के उदय से अन्यन्त अशुभ होते हैं । उनके अंग उपांगों का निर्माण संस्थान, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और स्वर हुण्ड होता है, ठेदे-भेदे पक्षो के शरीर के आकार के, बतक पक्षी के आकार के, अत्यन्त बीभत्स एवं घृणाजनक होते हैं । उन्हें देख कर दूसरे जीवो को घृणा और भय होता है। इस कारण वे शरीर क्रूर, करुणा, बीभत्स और अत्यन्त भयोत्पादक दिखाई देते हैं। तीत्र दुःखों और यातनाओं से परिपूर्ण एवं नित्य अशुचि होते है। नारकों के शरीर रत्नप्रभा आदि सातों पृथ्वियों में क्रम से नीचे-नीचे अधिकाधिक अशुभ होते हैं। उनके शरीर दो प्रकार के होते हैं । -भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । इनमें से
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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