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________________ ४८ तत्वार्थसूत्रे अनुयोगद्वारसूत्रे षड्भावाधिकारे औदयिकस्य बहवो भेदाः वक्ष्यमाणरीत्या प्रतिपादिताः सन्ति तथापि सूत्रेऽस्मिन् संक्षेपेणैव तस्य तावदौदयिकभावस्य वर्णितत्वेन तेषां सर्वेषामपि-औदयिकभावानां सूत्रोक्तकविंशतिभेदेष्वेवान्तर्भावेण न-कोऽपि दोषः तथाहि-से किं तं उदइए ! उदइए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-उदइए य उदयनिप्फण्णे य । से किं तं उदइए ? उदइए अटण्हं कम्मपयडीणं उदएणं, से तं उदइए । से किं तं उदयनिष्फण्णे : उदयनिष्फण्णे दुविहे 'पण्णत्ते तं जहा-जीवो दयनिप्फन्ने य अजीवोदयनिष्फन्ने य । से कितं जीवोदयन्निप्फण्णे? जीवोदयनिप्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा णेरइए तिरिक्खजोणिए मणुस्से देवे पुढविकाइए जाव तसकाइए कोहकसाई जाव लोहकसाई, इत्थीवेदए पुरिसवेदए णपुंसगवेदए, कण्हलेसे जाव सुक्कलेसे, मिच्छादिट्ठी अविरए असण्णी, अण्णाणी आहारए छउमत्थे संसारत्थे असिद्धे से ते जीवोदयनिष्फन्ने । से किं तं अजीवोदयनि'फन्ने अजीवोदयनिप्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते तं जहा-उरालियं सरीरं, उरालियसरीरपयोगपरिणामियं वा दव्बं, एवं वेउव्वियं वा सरीरं, वेउव्वियसरीरपयोगपरिणामियं वा दव्वं आहारगं सरीरं, तेयगं सरीरं, कम्मगं सरीरं च भाणियव्वं, पयोगपरिणामिए वण्णे गंधे रसे फासे, से तं अजीवोदयनिष्फण्णे, से तं उदयनिप्फण्णे, से तं उदइए ॥ इति ॥ छाया-अथ कस्तावदौदयिकः? औदयिकः द्विविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा-औदयिकश्च उदयनिष्पन्नश्च, अथ कस्तावदौदयिकः? औदयिकः अष्टानां कर्मप्रकृतीनामुदयेन, स तावदौदयिकः । अथ कस्तावदुदयनिष्पन्नः ? उदयनिष्पन्नः द्विविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा जीवोदयनिष्पन्नश्च अजीवोदयनिष्पन्नश्च, अथ कस्तावज्जीवोदयनिष्पन्नः ? जीवोदयनिष्पण्णः अनेकविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा-नैरयिकः तिर्यग्योनिकः मनुष्यः देवः पृथिवीकायिकः यावत् त्रसकायिकः क्रोधकषायी यावद् लोभकषायी स्त्रीवेदकः पुरुषवेदकः नपुंसकवेदकः। इस प्रकार सब मिला कर औदयिक भाव के इक्कीस भेद होते हैं । यद्यपि अनुयोगद्वार सूत्र में छः भावों के प्रकरण में औदयिक भाव के बहुत से भेद बतलाए गए हैं, जिनका कथन आगे किया जाएगा, तथापि उन सब औदयिक भावों का सूत्र में कथित इक्कीस भेदों में ही समावेश हो जाता है, अतएव कोई दोष नहीं समझना चाहिए । अनुयोगद्वार सूत्र का कथन इस प्रकार है ____ औदयिक भाव कितने प्रकार का है ? औदयिकभाव दो प्रकार का कहा गया है- औदयिक और उदयनिष्पन्न । औदयिकभाव क्या है ? औदयिकभाव आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होता है वही औदयिक है । उदयनिष्पन्न क्या है ? उदयनिष्पन्न दो प्रकार का कहा गया है-जीवोदयनिष्पन्न और अजीवोदयनिष्पन्न । जीवोदयनिष्पन्न किसे कहते हैं ? वह अनेक प्रकार का कहा गया है, यथा - नैरयिक तियेच, मनुष्य, देव, पृथिवीकायिक, यावत, त्रसकायिक, क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी, स्त्री
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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