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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ४ सू. २७ ज्योतिष्कदेवानां गतिसञ्चारादिनिरूपणम् ५४१ "तेन परं यानि शेषाणि-चन्द्रादित्यग्रहतारानक्षत्राणि-। नास्ति गतिर्नापि चारो-ऽवस्थितानि तानि ज्ञातव्यानि- ॥३॥ "व्याख्याप्रज्ञप्तौ भगवतीसूत्रेऽपि १२-शतके ६-उद्देशके चोक्तम् "-से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-सुरे आइच्चे सूरे ? गोयमा ! सूराइयाणं समयाइव', आवलियाइबा, जाव-उस्सप्पिणीवा, अवसप्पिणीइवा, "से तेणटेणं जाव-आइच्चे-” तत्केनार्थेन भदन्त ! एव मुच्यते ? सूर्यः आदित्यः सूर्यः-इति, गौतम ! सूर्यादिका खलु-समयादयो वा, आवलिकादयो वा, यावद्-उत्सर्पिणीवा, अवसर्पिणी-इतिवा, तत्तेनार्थेन यावद् आदित्यः इति । ततश्चा-ऽग्रेऽपि व्याख्याप्रज्ञप्तौ ११-शतके ११-उद्देशके चोक्तम् -- “से किं तंपमाणकाले २ दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-दिवसप्पमाणकाले, राइप्पमाणकाले इच्चाइ-" इति । अथ किं तावत्-प्रमाणकालः ? प्रमाणकालः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-दिवसप्रमाणकालः, रात्रिप्रमाणकालश्चेत्यादि । ___ एवञ्च-"जम्बूद्वीपोपरि-द्वौ सूयौं" इत्युक्तमेव, षट् पञ्चाशन्नक्षत्राणि, षट् सप्तत्यधिकशतग्रहाः, लबणसमुद्रोपरि-चत्वारो दिनमणयः, द्वादशाधिकशतनक्षत्राणि, द्विपञ्चाशदधिकशतत्रयग्रहाः, धातकीखण्डोपरि-द्वादशसूर्याः, षट्त्रिंशदधिकशतत्रयनक्षत्राणि, षट्पञ्चाशदधिकसहस्रग्रहाः, कालोदसमुद्रोपरि-द्वाचत्वारिंशत्सूर्याः, षट्सप्तत्यधिकैकशतोत्तरसहस्रनक्षत्राणि, षण्णवत्यधिकषट्शतोत्तरसहस्रत्रयग्रहाः, पुष्करा|परि-द्वासप्ततिः सूर्याः, षोडशाऽधिकसहस्रद्वयनक्षत्राणि, षट् मनुष्यक्षेत्र से बाहर जो चन्द्र, सूर्य, ग्रह, तारा और नक्षत्र हैं, उनमें गति नहीं होती, वे संचार नहीं करते किन्तु अवस्थित ही रहते हैं ॥३॥ - भगवतीसूत्र शतक १२, उद्देशक ६ में भी कहा है- प्रश्न-भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि सूर्य आदित्य सूर्य है ? गौतम ! समय, आवलिका यावत् उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी आदि का विभाग सूर्य से ही होता है, इस कारण से आदित्य ऐसा कहा जाता है । आगे भी व्याख्याप्रज्ञप्ति के ग्यारहवें शतक के ग्यारहवें उद्देशक में कहा है 'प्रमाणकाल के कितने भेद हैं ? उत्तर-प्रमाण काल दो प्रकार का कहा गया हैदिवस प्रमाणकाल और रात्रिप्रमाणकाल, इत्यादि । ' यह पहले ही कहा जा चुका है कि जम्बूद्वीप के ऊपर दो सूर्य हैं । छप्पन नक्षत्र है, एक सौ छिहत्तर ग्रह हैं । लवणसमुद्र के ऊपर चार दिनमणियाँ हैं, एक सौ बारह नक्षत्र हैं, तीनसौ बावन ग्रह हैं। धातकी खंड द्वीप के ऊपर बारह सूर्य, तीनसो छत्तीस नक्षत्र और एक हजार छप्पन ग्रह हैं। कालोद समुद्र के ऊपर बयालीस सूर्य, एक हजार एक सौ छिहत्तर नक्षत्र और तीन हजार छहसौ छियानवे ग्रह है।
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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