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________________ ५१२ तत्वार्थसूत्रे तदने त्रित्रिरूपेण त्रीणि त्रिकाणि कल्पातीतानां नवप्रैवेयकदेवानां सन्ति, तेषु प्रथमं त्रिकं समतलभूमितः पञ्चरज्जुकम् एकरज्जुकस्य त्रयो भागाः क्रियन्ते तेभ्य एको भागश्चेतावत्कमुपरि वर्तते ३ द्वितीय त्रिकं पञ्चरज्जुकम् एकस्य रज्जुकस्य भागत्रयमध्याद् द्वौ भागौ चेतावत्कं समभूमित उपरि वर्तते ६ तृतीयं त्रिकं परिपूर्ण षड्रग्ज़ुक समतलभूमित उपरि वर्त्तते ९ एते नव पुरुषाकारलोकस्य ग्रीवास्थाने वर्तमानत्वाद् अवेयका उच्यन्ते । तदने पञ्चानुत्तरविमानानि येषामुत्तरेऽग्रे न केऽपि विमानविशेषा विद्यन्ते इति तान्यनुत्तरविमानानि प्रोच्यन्ते ते पञ्च प्रत्येकं चतुर्दिक्षु समश्रेण्या स्थिताः किञ्चिदूनसप्तरज्जुकं समतलभूमित उपरि वर्तते। तेषां पञ्चोनां परस्परमन्तरम् एकरज्जुकस्य किञ्चिदूमाः पञ्चभागा क्रियन्ते, तन्मध्यादेककभागपरिमितमन्तरमेकैकस्य वर्तते । इति पञ्चानुत्तरविमानवनम् । नवप्रैवेयकाः, पञ्चानुत्तरदेवाश्चेति चतुर्दशानां कल्पातीतदेवानां वर्णनमग्रिमसूत्रे करिष्यते इति । जम्बूद्वीपे महामन्दरः सहस्रयोजनावगाहो नवनवतिसहस्रयोजनोच्छ्रायः । तस्याधस्तदधोलोको वर्त्तते । तिर्यप्रसृतश्च तिर्यग्लोको वर्त्तते तस्योपरिष्टात् उप्रलोको वर्त्तते । मेरूचूलिका च चत्वारिंशद् योजनोच्छ्राया बोध्या । उक्तञ्च-प्रज्ञापनायां प्रथमपदे देवाधिकारे- "वेमाणिया"दुविहा पण्णत्ता,तंजहा कप्पोववण्णगा य कप्पाईया य,से किं तं कप्पोववण्णगा-१ कप्पोव ___ इनके आगे तीन तीन करके तीन त्रिक में कल्पातीत नव प्रैवेयक देव हैं। उन तीन त्रिकों में से पहला त्रिक समतल भूमि से पाँच राजू और एक राजू के तीन भागों में का एक भाग जीतना ऊँचा है ३ दूसरा त्रिक पाँच राजू और एक राजू के तीन भागो में का दो भाग जितना ऊँच। है ६ । और तीसरा त्रिक पूरा छह राजू समतल भूमि से ऊँचा है । ये नव पुरुषाकार लोक के ग्रीवा (गला) स्थल पर होने से प्रैवेयक कहलाते हैं ९।। इन के आगे पाँच अनुत्तर विमान हैं, जिनके उत्तर अर्थात् आगे कोई विमान न होने से ये अनुत्तर विमान कहलाते हैं ये पाँच प्रत्येक चारों दिशाओं में समश्रेणि से स्थित है ये समतल भूमि से कुछ कम सात राजू ऊँचे हैं । ये पांचों अनुत्तर विमान एक राजू के कुछ कम पाँच भाग किये जायें, उन में से एक-एक भाग के अन्तर से स्थित हैं । यह पाँच अनुत्तर विमानों का वर्णन हआ। ऐसे ये नौ ग्रैक्थक और पाँच अनुत्तर विमान वासी इस प्रकार चौदह कल्पातीत देव कहलाते हैं, इन चौदह प्रकार के कल्पातीत देवों का वर्णन अगले सूत्र में किया जायगा । जम्बूद्वीप का महामन्दर पर्वत एक हजार योजन पृथिवी के अन्दर है, निन्यानबे (९९) हजार योजन की इसकी ऊँचाई है, इसके नीचे के भाग में अधोलोक है। तिर्यक अर्थात् टेढ़ा फैला हुआ तिर्यगलोक है । इसके ऊपर ऊर्ध्वलोक है । इस मेरुकी चूलिका चालीस योजन की ऊँचाई वाली है । __प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद में देषाधिकार में कहा है --वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-कल्पोषपन्नक और कल्पातीत कल्पोपपन्नक कितने प्रकार के हैं ? वे
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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