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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ४ सू. २० कल्पोपपन्नकवैमानिकदेवनिरूपणम् ५११ तत ऊर्ध्वं नवग्रैवेयकानि उपर्युपरि क्रमेण सन्ति, तदुपरि च पञ्चमहाविमानानि सन्तीति वैमानिकदेवानामवस्थितिक्रमोऽवगन्तव्यः तत्र-सौधर्मकल्पसाहचर्यात्तदिन्द्रोऽपि सौधर्म उच्यते ईशानदेवलोकस्य ऐशानो नाम इन्द्रः स्वभावतो वर्त्तते, ऐशानस्य निवासः कल्प ऐशान उच्यते, तत्साहचर्यादिन्द्रोऽपि ऐशान उच्यते इत्येवं रीत्या सनत्कुमारादयोऽप्यवगन्तव्याःसौधर्मादिकल्पवासिनां देवानां दशइन्द्रा भवन्ति नवम-दशमयोः,एकादश-द्वादशयोश्चेति युगलद्वये एकैकेन्द्रस्य सद्भावात् । अथ सौधर्मादयो देवलोकाः समतलभूमितः कियत्कियहूरमुपरि वर्त्तते इति प्रदर्श्यते प्रथमद्वितीयौ सौधर्मेशानौ द्वौ कल्पौ युगलरूपेण स्थितौ समतलभूमितः सार्दुकरज्जुकमुपरि वर्तेते२, तृतीयचतुर्थको सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्पौ युगलरूपेण स्थितौ समतलभूमितः सार्द्ध द्विरज्जुकमुपरि वर्तेते४ । एवं पञ्चमः कल्पः सपादत्रिरज्जुकम्, षष्टः कल्पः सार्द्धत्रिरज्जुकम् ,सप्तमः कल्प एकभागोन चतुरज्जुकम् अष्टमः कल्पः चतूरज्जुकम् , एवं नवमदशमौ युगलरूपेण स्थितौ द्वौ कल्पौ सार्द्धचतूरज्जुकम् , एवमेव एकादश-द्वादशौ युगलरूपेण स्थितौ द्वौ कल्पौ समतलभूमितः पञ्चरज्जुकमुपरि वर्तेते १२, इति-कल्पोपपन्नदेवसम्बन्धिनां द्वादशदेवलोकानां समतलभूमित उच्चैस्त्वं विज्ञेयमिति । बारहवें कल्प के ऊपर नौ अवेयक विमान हैं। जो एक -दूसरे के ऊपर अवस्थित हैं । उनके ऊपर पाँच अनुत्तर नामक महा विमान हैं । यह वैमानिक देवों की अवस्थिति का क्रम हैं। ___सौधर्म कल्प के कारण वहां का इन्द्र भी सौधर्म कहलाता है । ईशान नामक देब स्वभावतः निवास करता है। उसका निवास होने से बह कल्प ऐशान कहलाता है और ऐशान कल्प के सहचर्य से वहाँ का इन्द्र ऐशान इन्द्र के नाम से प्रसिद्ध है। इसी प्रकार आगे के कल्पों एवं इन्द्रों के विषय में भी समझलेना चाहिये । सौधर्म आदि कल्पों में निवास करने वाले देवों के दस इन्द्र होते हैं । क्यों कि नौवे और दस वें इन दो देव लोकों का भी एक ही इन्द्र होता है, अब यहाँ सौधर्मादि देवलोक समतल भूमिसे कितने ऊँचे हैं ! यह दिखलाया जाता हैपहला और दूसरा जो सौधर्म और ईशान कल्प है वे युगलरूप से स्थित दोनों कल्प समतल भूमि से डेढ राजू २ । तीसरा और चौथा जो सनत्कुमार और माहेन्द्र ये युगल रूप से स्थित दोनों कल्प समलत भूमि से (२) ढाई राजू ऊपर है ४। इसी प्रकार पाँचवाँ कल्प (३) सवा तीन राजू ऊपर है, छठा कल्प (३॥) साढे तीन राजू ऊँचा है, सातवाँ कल्प (३॥.) पौने चार राजू ऊँचा हैं, और आठवां सहस्रार कल्प (४) चार राजू समतल भूमि से ऊँचा है ८ । इसी प्रकार नौवां और दसवाँ युग़ल रूप से स्थित ये दोनों कल्प (४) साढे चार राजू ऊँचे हैं, तदनन्तर ग्यारहवां और बारहवां युगल रूप से स्थित ये दोनों कल्प समतल भूमि से पाँच राजू ऊँचे है। यह कल्पोपपन्न बारह देवलोकों का समतल भूमि से ऊपर होने का प्रमाण जानना चाहिये !
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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