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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ४ सू. ११ पञ्चाणुव्रतनिरूपणम् ४५९ मूलसूत्रम्-"पाणाइवायाइहितो देसओ वेरमणं पंचाणुव्वया-" ॥ ११ ॥ छाया-"प्राणातिपातादिभ्यो देशतो विरमण पञ्चाणुव्रतानि-" ॥ १ ॥ तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे प्राणातिपातादिभ्यः सर्वतो विरतिलक्षणानि पञ्च महाव्रतानि प्ररूपितानि, सम्प्रति-तेभ्य एवं प्राणातिपातादिभ्यो देशतो विरतिलक्षणानि पञ्चाणुव्रतानि प्ररूपयितुमाह - "पाणाइवायाइ हिंतो देसओ वेरमणं पंचाणुव्वया-" इति । प्राणातिपातादिभ्यो देशतः एकदेशतो विरमणं विरतिः निवृत्तिः पञ्चाणुव्रतान्युच्यन्ते । तत्र प्राणातिपातः प्राणिप्राणव्यपरोपणम् जीवहिंसा, आदिपदेना-ऽनृतभाषण-स्तेय-मैथुनपरिग्रहा गृह्यन्ते, तेभ्यः पञ्चभ्यो देशतः एकदेशतो विरमणम् , स्थूलप्राणातिपात-स्थूलानृतभाषणस्थूलस्तेय स्थूलाब्रह्मचर्य-स्थूलपरिग्रहेभ्यो निवृत्तिः खलु–पञ्चाणुव्रतानि उच्यन्ते ॥ ११ ॥ तत्त्वार्थनियुक्तिः-पूर्व सकलपाणिगणप्राणब्यपरोपण-मृषावाद-स्तेया-ऽब्रह्मचर्य-परिग्रहनिवृत्तिरूपपञ्चमहाव्रतानि प्ररूपितानि, सम्प्रति-स्थूलप्राणातिपातादिनिवृत्तिलक्षणपञ्चाणुव्रतानि प्ररूपयितुमाह-पाणाइवायाइहिंतो देसओ वेरमणं पंचाणुव्वया-" इति । प्राणातिपातादिभ्यो देशतो विरमणम् एकदेशतो निवृत्तिः पञ्चाणुव्रतानि उच्यन्ते । तथाच सूत्रार्थ-'पाणाइवायाइहिंतो देसओ वेरमणं' इत्यादि । ११ प्राणातिपात आदि से एक देश से विरत होना पंच अणुव्रत हैं ॥११॥ तत्त्वार्थदीपिका--पूर्वसूत्र में प्राणातिपात आदि से पूर्ण रूप से विरत होने रूप पाँच महाव्रतों का प्ररूपण किया गया, अब यह बतलाते हैं कि उन्हीं प्राणातिपात आदि से आंशिक रूप से विरत होना पाँच अणुव्रत हैं प्राणातिपात आदि पाँच फलों से देश से विरत होना पांच अणुव्रत हैं । प्राणव्यपरोपण या जीवहिंसा को प्राणातिपात कहते हैं। सूत्र में प्रयुक्त 'आदि' शब्द से असत्यभाषण, स्तेय, मैथुन और परिग्रह का ग्रहण कर लेना चाहिए । इन पाँचों से एक देश से विरत होना पाँच अणुव्रत हैं । अर्थात् स्थूल प्राणातिपातविरमण, स्थूल मृषावादविरमण, स्थूल चोरी (स्तेय) विरमण स्थूल अब्रह्मचर्यविरमण और स्थूल परिग्रहविरमण अर्थात् परिग्रह परिमाण, यह पाँच अणुव्रत हैं ॥११॥ तत्त्वार्थनियुक्ति—पहले सम्पूर्ण प्राणियों के प्राणव्यपरोपण से निवृत्ति सम्पूर्ण मृषावाद से, सम्पूर्ण अदत्तादान से, सम्पूर्ण अब्रह्मचर्य से तथा सम्पूर्ण परिग्रह से निवृत्ति रूप पाँच महाव्रतों का निरूपण किया गया है, अब स्थूल प्राणातिपात आदि से निवृत्ति रूप पाँच अणुव्रतों का कथन करते हैं। प्राणातिपात आदि का आंशिक रूप से त्याग करना पाँच अणुव्रत कहलाते हैं। हिंसा दो प्रकार की है संकल्पजा और आरम्भजा, अथवा सूक्ष्म और स्थूल के भेद से भी
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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