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________________ ४१० wwwwwwww तत्त्वार्थसूत्रे छाया-नामगोत्रयोरष्टमुहूर्ता स्थितिघन्यिका-॥ तत्त्वार्थदीपिका--पूर्वसूत्रे वेदनीयस्य कर्मणः सातावेदनीयरूपोत्तरप्रकृतेः स्थितिः प्ररूपिता, सम्प्रति-नामगोत्रयोः स्थितिं प्रतिपादयितुमाह-नामगोत्ताणं अट्ठ मुहुत्ता ठिई जहन्निया-इति । नामगोत्रयो रष्टमुहूर्ता स्थिति धन्या प्रज्ञप्ता, अबाधाकालोऽन्तर्महूर्तप्रमाणः ॥१९॥ तत्त्वार्थनियुक्ति:--पूर्व वेदनीयस्य कर्मणः स्थितिः प्ररूपिता, सम्प्रति-नामगोत्रयोः स्थिति प्रतिपादयितुमाह-नामगोत्ताणं अट्टमुहुत्ता ठिई जहन्निया"-इति । नामगोत्रकर्मणोरष्ट मुहर्ता स्थितिः जघन्यिका जघन्येन सम्भवति । उक्तञ्च भगवतीसूत्रे ६ शतके ३ उद्देशके 'नामगोयाणं-जहण्णेणं अट्ठमुहत्ता-" इति । नामगोत्रयोर्जघन्येनाऽष्टौ मुहूर्तानि, इति ॥१९॥ - मूलसूत्रम्-- 'सेसाणं अंतो मुहुत्तं जहन्निया" ॥२०॥ छाया-शेषाणाम् अन्तर्मुहूर्त जघन्यिका तत्त्वार्थदीपिका--पूर्वसूत्रद्वये वेदनीयनामगोत्रेति त्रयाणां मूलप्रकृतीनां स्थितिः प्ररूपिता, सम्प्रति तदन्येषां पञ्चानां ज्ञानावरणादीनां मूलप्रकृतीनां स्थिति प्ररूपयितुमाह--"सेसाणं अंतोमुहुत्ता जहन्निया-" इति । शेषाणाम्-पूर्वसूत्रद्वयोक्तेभ्यो वेदनीयनामगोत्रेभ्योऽतिरिक्तानां सूत्रार्थ--'नामगोत्ताणं अह मुहुत्ता ठिई' इत्यादि । सूत्र-१९॥ नाम कर्म और गोत्र कर्म की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की होती है ॥१९॥ तत्त्वार्थदीपिका--पूर्व सूत्र में वेदनीय कर्म की स्थिति कही गई है, अब नाम और गोत्र कर्म की स्थिति का प्रतिपादन करने के लिए कहते हैं-नाम और गोत्र कर्म की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की है। इसका अबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है ॥१९॥ तत्त्वार्थनियुक्ति - पहले वेदनीय कर्म की स्थिति की प्ररूपणा की गई, अब नाम और गोत्र रूप मूल प्रकृतियों का प्रतिपादन करते हैं नाम और गोत्र कर्म की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त प्रमाण है। भगवती सूत्र शतक ६, उद्देशक ३ में कहा है-नाम और गोत्र कर्म की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की है ॥१९॥ सूत्रार्थ - ‘सेसाणं अंतो मुहुत्ता' इत्यादि । सूत्र ॥२०॥ शेष प्रकृतियों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है ॥ २० ॥ तत्त्वार्थदीपिका – इससे पहले के दो सूत्रों में वेदनीय, नाम और गोत्र कर्म, रूप मूल प्रकृतियों की स्थिति बतलाई गई है, अब शेष पाँच ज्ञानावरण आदि रूप मूल प्रकृतियों की स्थिति कहते हैं शेष अर्थात् पूर्वोक्त वेदनीय, नाम और गोत्र कर्म से अतिरिक्त ज्ञानावरण, दर्शना
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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