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________________ दीपिकानियुक्तश्च अ० ३ सू०११ नामकर्मणो द्विचत्वारिंशभेदनिरूपणम् ३८९ गति–जाति-शरीर-शरीराङ्गोपाङ्ग-शरीरबन्ध-शरीरसंधात-संहनन-संस्थान-वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्शा १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ ऽगुरुलघूपघात पराधाता-ऽऽनुपूर्युच्छ्वास - आतपो--द्योत विहायोगति-त्रस-स्थावर-सूक्ष्म--बादर२५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ पर्याप्ता--ऽपर्याप्त-साधारणशरीर--प्रत्येकशरीर--स्थिरा--स्थिर--शुभा-ऽशुभ-सुभग--दुर्भग--सुस्वर--दुः ३६ ३७ ३८ ३९ ४० ४१ ४२ स्वरा-ऽऽदेया--ऽनादेय--यशःकीर्त्य--यशःकीर्ति--निर्माण-तीर्थङ्करनामभेदात् । इत्येवं तावद् द्विचत्वाशिंभेदाः नामकर्मणो मूलप्रकृतिबन्धस्योत्तरप्रकृत्योऽवगन्तव्याः । आसामुत्तरप्रकृतीनां भेदास्तु-त्रिनवतिसंख्यका बोध्या, तथाहि-(१) गतिनामचतुर्विधम्, । नरक-- तिर्यग्--मनुष्य--देवगतिभेदात्४., (२) जातिनाम--पञ्चविधम् , एकेन्द्रिय--द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय--पञ्चेन्द्रियजातिभेदात् (९) (३) शरीरनाम--पञ्चविधम्, औदारिक-वैक्रिया ऽऽहारकतैजस कार्मणशरीरनामभेदात्-(१४) (४)शरीराङ्गोपाङ्गनाम--त्रिविधम्, औदारिक--बैक्रिया--ऽऽहारक शरीराङ्गोपाङ्गनामभेदात्३(१७) (५) शरीरबन्धनामपञ्चविधम्, औदारिकादिपञ्च शरीरबन्धभेदात्५ (२२) । (६) शरी गति, जाति, शरीर आदि के भेद से नाम कर्म की वयालीस उत्तर प्रकृतियाँ होती है । उनके नाम इस प्रकार हैं--(१) गति (२) जाति (३) शरीर (४) शरीरांगोपांग (५) शरीर बन्धन (६) शरीर संघात (७) संहनन (८) संस्थान (९) वर्ण (१०) गंध (११) रस (१२) स्पर्श (१३) अगुरु लघु (१४) उपघात (१५) पराघात (१६) आनुपूर्वी (१७) उच्छ्वास (१८) आतप (१९) उद्योत (२०) विहायो गति (२१) त्रस (२२) स्थावर (२३) सूक्ष्म (२४) बादर (२५) पर्याप्त (२६) अपर्याप्त (२७) साधारण शरीर (२८) प्रत्येकशरीर (२९) स्थिर (३०) अस्थिर (३१) शुभ (३२) अशुभ (३३) सुभग (३४) दुर्भग) (३५) सुस्वर (३६) दुःस्वर (३७) आदेय (३८) अनादेय (३९) यशःकीर्ति (४०) अयशः कीर्ति (४१) निर्माण और (४२) तीर्थकरनाम । इन (४२) उत्तरप्रकृतियों के तिरानवे (९३) भेद होते हैं, वे इस प्रकार हैं। (१) गतिनाम कर्मके चार भेद हैं-नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति । (२) जातिनामकर्म के पाँच भेद हैं-एकेन्द्रियजाति, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति और पंचेन्द्रियजाति ५(९)। (३) शरीरनामकर्म पाँच प्रकार का है-औदारिकशरीरनामकर्म, वैक्रिय शरीरनामकर्म, आहारकशरीरनामकर्म, तैजसशरीरनामकर्म और कार्मणशरीरनामकर्म ५(१४) । (४) अंगोपांगकर्म के तीन भेद हैं-औदारिक-अंगोपांग, वैक्रिय-अंगोपांग, आहारक अंगोपांग ३(१७)। (५) शरीरबन्धननामकर्म के पाँच भेद हैं-औदारिकशरीरबन्धन, वैक्रियशरीरबन्धन, आहारकशरीरबन्धन, तैजसशरीरबन्धन, कार्मणशरीरबन्धन ५(२२) । शरीर
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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