SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ rrrrrrrrrrmiraram rammar ३८८ तत्त्वार्थसूत्रे सम्प्रति-क्रमप्राप्तस्य षष्ठस्य नामकर्मणोमूलप्रकृतिबन्धस्य द्विचत्वारिंशद् विधा उत्तरप्रकृतीः प्ररूपयितुमाह-"णामे" इत्यादि । नामकर्म-उत्तरप्रकृतित्वेन द्विचत्वारिंशद्विधं प्रज्ञप्तम् , गति-जातिशरीरादिभेदतः । गतिनाम-१ जातिनाम-२ शरीरनाम-३ शरीराङ्गोपाङ्गनाम-४ शरीरबन्धनाम-५ शरीरसंघातनाम-६ संहनननाम-७ संस्थाननाम-वर्णनाम–९ गन्धनाम-१० रसनाम-११ स्पर्शनाम-१२ अगुरुलघुनाम-१३ उपघातनाम-१४ पराघातनाम-१५ आनुपूर्वीनाम-१६ उच्छ्वासनाम-१७आतपनाम-१८ उद्योतनाम–१९ विहायोगतिनाम-२० त्रसनाम-२१ स्थावरनाम-२२ सूक्ष्मनाम२३ बादरनाम-२४ पर्याप्तनाम-२५ अपर्याप्तनाम–२६ साधारणशरीरनाम-२७ प्रत्येकशरीरनाम-२८ स्थिरनाम-२९ अस्थिरनाम-३० शुभनाम-३१ अशुभनाम-३२ सुभगनाम-३३ दुर्भगनाम-३४ सुस्वरनाम-३५ दुःस्वरनाम-३६ आदेयनाम-३७ अनादेयनाम-३८ यशःकीर्तिनाम-३९ अयशःकीर्तिनाम-४० निर्माणनाम-४१ तीर्थङ्करनाम-४२.इत्येवमुत्तरप्रकृतिनाम द्विचत्वारिंशविधं बोध्यम्- ॥११॥ तत्त्वार्थनियुक्तिः-पूर्वसूत्रे पञ्चमायुष्यकर्मणश्चतम्न उत्तरप्रकृतयः प्रतिपादिताः, सम्प्रतिक्रमप्राप्तषष्ठनामकर्मणो मूलप्रकृतिबन्धस्य द्विचत्वारिंशदविधा उत्तरप्रकृतीः प्ररूपयितुमाह-"णामेबायालीसविहे, गइ-जाइ-सरीराइ भेयओ-" इति । ___ नामकर्म-उत्तरप्रकृतित्वेन द्विचत्वारिंशद्विधं प्रज्ञप्तम्, गति–जाति-शरीरादिभेदतः । कहीं गई हैं, अब क्रमप्राप्त छठी मूल कर्म प्रकृति नामकर्म की बालीस उत्तरप्रकृतियाँ कहते हैं उत्तरप्रकृतियों की अपेक्षा से नामकर्म के बयालीस भेद हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) गतिनाम (२) जातिनाम (३) शरीर नाम (४) शरीरांगोपांग नाम (५) शरीर बन्धन नाम (६) शरोर संघात नाम (७) संहनन नाम (८) संस्थान नाम (९) वर्णनाम (१०) गंध नाम (११) रसनाम (१२) स्पर्शनाम (१३) अगुरुलघु नाम (१४) उपघात नाम (१५) पराघात नाम (१६) आनुपूर्वी नाम (१७) उच्छ्वास नाम (१८) आतप नाम (१९) उद्योतनाम (२०) विहायोगति नाम .(२१) त्रसनाम (२२) स्थावर नाम (२३) सूक्ष्मनाम (२४) बादर नाम (२५) पर्याप्त नाम (२६) अपर्याप्त नाम (२७) साधारण शरीर नाम (२८) प्रत्येक शरीर नाम (२९) स्थिर नाम (३०) अस्थिर नाम (३१) शुभ नाम (३२) अशुभ नाम (३३)सुभग नाम (३४) दुर्भग नाम (३५) सुस्वर नाम (३६) दुःस्वर नाम (३७) आदेय नाम (३८) अनादेय नाम (३९) यशःकीर्ति नाम (४०) अयशःकीर्ति नाम (४१) निर्माण नाम और (४२) तीर्थकर नाम; ये नाम कर्म की क्यालीस उत्तर प्रकृतियों हैं ॥११॥ तत्त्वार्थ नियुक्ति- पिछले सूत्र में आयुष्य कर्म की चार उत्तरप्रकृतियाँ कही गई, क्रमप्राप्त नाम कर्म की वयालीस उत्तर प्रकृतियों को प्रतिपादन करते हैं
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy