SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ३ सू० ७ दर्शनावरणस्य भेदनिरूपणम् ३६९ दर्शनावरणरूपद्वितीयं कर्म मूलप्रकृतिबन्धस्योत्तरप्रकृतिभेदा नव भवन्ति तथाहि चक्षुर्दर्शनावरणम् अचक्षुर्दर्शनावरणम्-२, अवधिदर्शनावरणम्-३, केवलदर्शनावरणम्-४, निद्रा-५ निद्रानिद्रा-६, प्रचला-७, प्रचलाप्रचला - ८, स्त्यानर्द्धि-९, श्चेति । . तत्र-सुखप्रतिबोधलक्षणः स्वापो निद्रा, निद्रा निद्राच-दुःखप्रतिबोधस्वरूपा, । ऊर्ध्वशयनलक्षणातिष्टच्छयनरूपा प्रचला, चक्रमणेन चलनं प्रचलाप्रचला स्त्यानर्द्धिः स्त्यानं स्तिमितं तस्य ऋद्धिः स्त्यानःि, स्तब्धताऽतिशयः। तथाच-दर्शनावरणभेदाश्चक्षुर्दर्शनावरणादयो निद्रादयश्चेति नव भवन्ति । ___तत्र चष्टे पश्यत्यनेनाऽऽत्मेति चक्षुः दर्शनार्थकचक्षिङ्-धातोःचिक्षेः शिच्च इतिसिच् सर्वाण्येवेन्द्रियाणि सामान्य-विशेषबोधस्वभावस्यात्मनः करणरूपाणि द्वाराणि सन्ति तद् द्वारकञ्च चक्षुर्दर्शनं सामान्यमात्रोपलम्भनात्मक मात्मपरिणतिरूपं बोध्यम् तल्लब्धि-घातिच चक्षुर्दर्शनावरणं भवति चक्षुर्भिन्नेन्द्रियमन विषयमविशिष्टमचक्षुर्दर्शनमात्मपरिणतिरूपं बोध्यम्, तल्लब्धिघातिचा--ऽचक्षुर्दनावरणं भवति । ___अवधावपि प्रथमसम्पाते सामान्यमात्रोपलभ्भनात्मकमात्मपरिणतिरूपमवधिदर्शनम् । केवलदर्शनञ्च सामान्योपभोगरूपं भवति । एतदुत्तरावरणमवधिदर्शनावरणम्--केवलदर्शनावरणञ्चाऽवनिरूपण किया गया, यहाँ दर्शनावरण के नौ भेद कहे जाते हैं-दर्शनावरण नामक जो कर्म की दूसरी मूल प्रकृति है, उसके नौ भेद हैं । वे यों हैं १ चक्षुदर्शनावरण २ अचक्षुदर्शनावरण ३ अवधिदर्शनावरण ४ केवलदर्शनावरण ५ निद्रा ६ निद्रानिद्रा ७ प्रचला ८ प्रचलाप्रचला और ९ स्त्यानर्द्धि । जो नींद सरलता से टूट जाए वह निद्रा कहलाती है निद्रारूप अनुभव करने योग्य-को निद्रा कहते हैं । जो नींद कठिनाई से टूटे वह गाड़ी नींद निद्रानिद्रा है । खड़े-खड़े या बैठे-बैठे आने वाली निद्रा प्रचला है, जिस निद्रा में, सोचा हुआ कार्य कर डाला जाता है, वह स्त्यानर्द्धि निद्रा कहलाती है। इस प्रकार पाँच निद्राएँ और चार चक्षुदर्शनावरण आदि मिलकर दर्शना वरण के नौ भेद होते हैं । जिसके द्वारा आत्मा देखता है, उसे चक्षु कहते हैं ! सभी इन्द्रियाँ सामान्य-विशेष बोधस्वरूप आत्मा के लिए कारण हैं-रूपादि को ग्रहण करने के द्वार है। चक्षु रूप द्वार से होने वाला दर्शन अर्थात् सामान्य बोध चक्षुदर्शन कहलाता है वह आत्मा की ही एक विशिष्ट परिणति है। चक्षुदर्शनावरण चक्षुदर्शन लब्धि का घातक होता है। - चक्षु के अतिरिक्त शेष इन्द्रियों से तथा मन से होने वाला सामान्य बोध अचक्षुदर्शन है । वह भी आत्मा की ही परिणति है । उसकी लब्धि का घात करने वाला अचक्षुदर्शनाबरण कहलाता है। अवधिज्ञान के उपयोग से पहले जो सामान्य ज्ञान होता है वह अवधिदर्शन है । यह भी आत्मा की परिणति है । इसका धात करने वाला कर्म अबधिदर्शनावरण कहलाता है ।
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy