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________________ - तत्वार्यसले ख्येयभागावच्छिन्नपश्चात्पुरःकृतपुद्गलसामान्यविशेषग्राही मनःपर्यायज्ञानसंज्ञस्तस्यावरणं मनःपर्यायज्ञानावरणम् , इदमपि देशाघाति । समस्तावरणक्षयाविर्भूतमात्मप्रकाशतत्त्वम् सकलद्रव्यपर्यायग्राहिकेवलज्ञानम्. तस्यावरणं केवलज्ञानावरणम्, एतच्च सर्वघातिभवतीति भावः ॥६॥ मूलसूत्रम् - "दंसणावरणिज्जं नवविहं चक्खुमाइ भेयओ-" ॥७॥ छाया-"दर्शनावरणीयं नवविधं चक्षुरादिमेदतः ॥७॥ तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे ज्ञानावरणकर्म मूलप्रकृतिबन्धस्य पञ्चोत्तरप्रकृतयो मतिज्ञानावरणादिरूपाः प्रतिपादिताः, सम्प्रति-दर्शनावरणकर्ममूलप्रकृतिबन्धस्य 'नव' उत्तरप्रकृतीः प्रतिपादयितुमाह दर्शनावरणीय नवविधं भवति चक्षुरादिभेदतः चक्षु-रचक्षु-रवधिकेवलदर्शनावरणानि४ निद्रा निद्रानिद्रा-प्रचला-प्रचलाप्रचला-स्त्यानद्धयश्च नव-भेदा सन्ति तथाच-चक्षुर्दर्शनावरणम्-१ अचक्षुर्दनावरणम्-२, अवधिदर्शनावरणम्-३, केवलदर्शनावरणम्-४, निद्रा-५, निद्रानिद्रा-६, प्रचला-७, प्रचलाप्रचला-८, स्त्यानर्द्धिश्च-९ इत्येवं दर्शनावरणं नवविधं बोध्यम् ॥७॥ तत्त्वार्थनियुक्तिः-पूर्वसूत्रे मतिज्ञानावरणादिरूपाः पञ्चोत्तरप्रक्रतयः प्रतिपादिताः सम्पति-दर्शनावरणस्य भेदान् विवक्षुराह-'दसणावरणिज्ज' इत्यादि दर्शनावरणीयं नवविधं भवति आगे पीछे भूत-भविष्यत् काल के पुद्गलों को सामान्य और विशेष रूप से जानता है वह मनः पर्याय ज्ञान कहलाता है; इस ज्ञान को ढंकने वाला कर्म मनः पर्ययज्ञानावरण कहलाता है । यह कर्म भी देशघाति है । ____ जो ज्ञान समस्त आवरणों के क्षय से उत्पन्न होता है और समस्त द्रव्यों और पर्यायों को जानता है, वह केवल ज्ञान कहलाता है उसे आवृत करने वाला कर्म ज्ञानावरण है । केवल ज्ञानावरण कर्म सर्वघाती है ॥६॥ मूलसूत्रार्थ—'दसणावरणिज्जं नवविह' इत्यादि सूत्र ७ दर्शनावरणीय कर्म नौ प्रकार का होता है चक्षुर्दर्शनावरणीयआदि भेदसे ॥१० ७॥ तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्र में ज्ञानावरणकर्म रूप मूल प्रकृतिबन्ध की मतिज्ञानावरण आदि पाँच उत्तरप्रकृतियाँ बतलाइ गई हैं। अब दर्शनावरण कर्म रूप मूलप्रकृतिबन्ध की नौ उत्तरप्रकृतियाँ कहते हैं-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन के चार आवरण तथा निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला और स्त्यानर्द्धि, यह दर्शनावरण कर्म की नौ उत्तर प्रकृतियाँ हैं । इस प्रकार दर्शनावरण कर्म नौ प्रकार का है- (१ चक्षुदर्शनावरण (२) अचक्षु दर्शनावरण (३) अवधिदर्शनावरण (४) केवलदर्शनावरण (५) निद्रा (६) निद्रानिद्रा ७ प्रचला ८ मचलाप्रचला और ९ स्त्यानर्द्धि ॥७॥ तत्त्वार्थनियुक्ति-पूर्वसूत्र में ज्ञानावरणकर्म की मतिज्ञानावरण आदि पाँच प्रकृतियों का
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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