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________________ तत्त्वार्थसूत्रे पगमः । अभिगृहीतं मिथ्यादर्शनमुच्यते तद्भिन्नं मिथ्यादर्शनमनभिगृहीतमुच्यते । सन्दिग्धमप्यनभिगृहीतमिथ्यादर्शनविशेषएवेति भावः । प्रमादस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः, स्मृत्यनवस्थानम् कुशलेष्वनादरः--योगदुष्प्रणिधानञ्च । तथाच-- पूर्वोनुभूतवस्तुविषयस्मृतिभ्रंशलक्षणं स्मृत्यनवस्थानं प्रमादः, विकथाद्यासक्तचित्तत्वादिदं विधाय-इदंकर्तव्यमिति न स्मर्यते, एवं कुशलेषु आगमविहितेषु क्रियाकलापानुष्ठानेषु अनादरोऽनुत्साहोऽप्रवृत्तिलक्षणः प्रमादः। योगानां मनोवाक्कायव्यापाराणां दुष्टेन प्रणिधानेन आर्तध्यानपरायणेन चेतसा समाचरणं दुष्प्रणिधानं प्रमादोऽवगन्तव्यः । __ कषायस्तु--प्रधानतया चतुर्विधः क्रोधकषायः-मानकषायः-.-मायाकषायः-लोभकषायश्च । चतुर्विधोऽपि कषायः प्रत्येकं पुनश्चतुर्विधः अनन्तानुबन्ध्यादिभेदात् । तथाच----षोडशकषायाः, नवच नोकषायाः; सर्वे पञ्चविंशतिःकषायाःसन्ति । तत्र-त्रयोदशकषायाःबन्धहेतवो भवन्ति, । योगःपुनर्मनोवाक्कायभेदेन त्रिविधः, तत्र-सत्यासत्योभयव्यापारलक्षणो मनोयोगश्च चतुर्विधः । वाग्योगोऽपि सत्यासत्योभयाऽनुभयलक्षणश्चतुः प्रकारः । काययोगस्तु-औदारिकवैक्रिया-ऽऽहारक-कार्मणभेभिन्न मिथ्यादर्शन अनभिगृहीत कहलाता है । तात्पर्य यह है कि संदिग्ध भी अनभिगृहीत मिथ्यादर्शन ही हैं। प्रमाद के तीन भेद हैं-स्मृति का अनवस्थान शुभ कृत्यों में अनादर होना और योगों का दुष्प्रणिधान होना । पहले अनुभव की हुई वस्तु के विषय में स्मृति न रहना स्मृत्यनवस्थान कहलाता है । विकथा आदि में चित्त रमा रहने के कारण स्मरण नहीं रहता कि 'यह करने के पश्चात् यह करना हैं । इसी प्रकार आगम विहित क्रियाकलाप अर्थात् अनुष्ठानों में अनादर-अनुत्साह या प्रवृत्ति न होना भी प्रमाद है । मन वचन और काय का दूषित व्यापार होना, जैसे मन से आर्तध्यान या रौद्रध्यान करना, खोटे वचनों का प्रयोग करना और काय से हिंसा आदि में प्रवृत्त होना, यह सब प्रमाद है। ___कषाय प्रधान रूप से चार प्रकार का है-क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभ कषाय । इनमें से क्रोध आदि चारों के चार-चार भेद हैं- अनन्तानुबन्धी क्रोध, अप्रत्याख्यानी क्रोध, प्रत्याख्यानी क्रोध और संज्वलन क्रोध । इसी प्रकार मान आदि के भी भेद समझ लेने चाहिए । इस प्रकार सोलह कषाय और नौ नोकषाय मिल कर पचीस कषाय होते हैं । इनमें से तेरह कषाय बन्ध के कारण हैं। ___ मन, वचन और काय के भेद से योग तीन प्रकार का है-मनो योग के चार भेद हैंसत्यमनो योग, असत्यमनोयोग, उभय मनोयोग और अनुभय मनोयोग । वचन योग भी चार प्रकार का है-सत्यवचनयोग, असत्यवचनयोग, उभयवचन योग और अनुभय वचन मोग । औदारिक काययोग, वैक्रिय काययोग, आहारक काययोग, कर्मण काययोग, यह
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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