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________________ दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० २ सू. २२ परमाणु स्कन्धानामुत्पत्तिहेतुकथनम् २७५ न्धानां पर्यन्तवर्तिनः स्कन्धादेकदेशस्य परमाणोर्भिन्नत्व लक्षणात्-पृथक्त्वात् तन्न्यूनः स्कन्धो यावद् द्विप्रदेशस्कन्धपर्यन्ताः स्कन्धा उत्पद्यन्ते । एवम् संघात भेदलक्षणाद् एकत्व - पृथक्त्वाच्च एकसामयिकाद् द्विप्रदेशादयः स्कन्धाः उत्पद्यन्ते अन्यतो भेदेन पृथक्त्वलक्षणेन अन्यस्य संघातलक्षणेन एकत्वेनेति । एवम् — संघातानां द्वितीयनिमित्तवशाद विदारणरूपभेदलक्षणपृथक्त्वादेव परमाणुरुत्पद्यते, न तु पृथग्भूतानां संघातलक्षणादेकत्वात् परमाणुरुत्पद्यते इति भावः ॥ २२॥ तत्वार्थनिर्युक्तिः- पूर्वसूत्रे पुद्गलद्रव्याणां परमाणुलक्षणः - स्कन्धलक्षणश्च परिणामः प्रतिपादितः स च - तथाविधः परिणामः किम् अनादि आहोस्वित् सादिः ! इत्याशङ्काः समाधातुः सादिरसौ परिणामो भवति नत्वनादिः उत्पत्तिमत्त्वात् अतः परमाणुस्कन्धानामुत्पत्तिहेतुमाह 'एगत्तपुहुत्तेहिं' इत्यादि । एकत्वपृथक्त्वाभ्यां पुदुगलानां स्कन्धाः उत्पद्यन्ते पृथक्त्वे च पुगदलानां परमाणव उत्पद्यन्ते परमार्थतस्तु — संहृतत्वलक्षणा देकत्वात् भिन्नत्वलक्षणात् पृथक्त्वात् संघातभेदलक्षणात् एकत्व इसी प्रकार संख्यात, असंख्यात, अनन्त और अनन्तानन्त परमाणुओं अथवा छोटेछोटे स्कन्धों या स्कंधों और परमाणुओं के मेल से उतने ही प्रदेश वाले स्कंध उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार जैसे एकत्व से स्कंध उत्पन्न होते हैं, उसी तरह पृथक्त्व अर्थात् भेद से उत्पन्न होते हैं । जब किसी बड़े स्कंध में से एक परमाणु पृथक् हो जाता है तो वह छोटा स्कंध रह जाता है । यह भी स्कंध की उत्पत्ति है । जब एक बड़ा स्कंध दो भागों में या अनेक भागों में विभक्त हो जाता है तो अपेक्षाकृत छोटे-छोटे अनेक स्कंधों की उत्पति होती है । अगर उन छोटे-छोटे स्कंधों में भी पृथक्त्व पैदा हो जाय तो और अधिक छोटे अनेक स्कंध उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार द्विप्रदेशी स्कंध तक भेद से उत्पन्न हो सकते हैं । कभी-कभी ऐसा होता है कि एक बड़े स्कंध का एक भाग पृथक् हुआ और दूसरे स्कंध का भाग उसमें मिल गया, यहाँ एकत्व भी हुआ और पृथक्त्व भी हुआ । इस एकत्व पृथक्त्व से भी स्कंध बनते हैं । किन्तु परमाणु की उत्पत्ति एकत्व अर्थात् संघात से नहीं होती वह भेद - पृथक्त्व से ही उत्पन्न होता है । जब किसी स्कंध में से एक प्रदेश पृथक् होकर स्वतन्त्र हो जाता है, तब परमाणु कहलाने लगता है । इस प्रकार परमाणु पृथक्त्व से ही उत्पन्न होता है ॥२२॥ तत्वार्थनिर्युक्ति – पूर्वसूत्र में पुद्गलों का परमाणु रूप और स्कंधरूप परिणमन बतलाया गया है, मगर वह परिणमन क्या अनादि है अथवा सादि ? इस शंका का समाधान करने के लिए -- वह परिणमन सादि है, अनादि नहीं है, क्योंकि वह उत्पत्तिमान् है-परमाणुओं और स्कंधों की उत्पत्ति का कारण कहते हैं
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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