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________________ २७४ तत्वार्यसूत्रे मूलसूत्रम्-“एगत्तपुहुत्तेहिं कंधा पुहुत्तेण परमाणू य" ॥ २२ ॥ छाया--एकत्व पृथक्त्वाभ्यां स्कन्धा पृथक्त्वेन परमाणवश्च ॥२२॥ तत्वार्थदीपिका-पूर्वं पुद्गलानां पराणुस्कंधभेदाद् द्वैविध्यमुक्तम् सम्प्रति-परमाणुपुद्गलस्य स्कन्धपुद्गलस्य चोत्पत्तिहेतुमाह-एगत्तपुहत्तेहिं" इत्यादि ! एकत्व-पृथक्त्वाच्च स्कन्धा उत्पद्यन्ते पृथक्त्वेन परमाणवश्चोत्पद्यन्ते । तत्र-----पृथग्भूतानां परमाणुपुद्गलादीनां संघातापत्तिरेकत्वम् । तस्मात्-संघातानां च तेषां द्वितीयनिमित्तवशात् विदारणलक्षणो भेदः पृथक्त्वम् तस्माच्च स्कन्धा उत्पद्यन्ते तद्यथा--द्वयो पुद्गलपरमाण्वोः संघातलक्षणाद् एकत्वाद् द्विप्रदेशः पुद्गलस्कन्धः उत्पद्यते । एवं द्विप्रदेशस्य स्कन्धस्य परमाणोचैकस्य संघातलक्षणादेकत्वात् त्रयाणां वा परमाणूनां संघातलक्षणादेकत्वात् त्रिप्रदेशः स्कन्ध उत्पद्यते, द्वयोर्द्विप्रदेशयोः संघातलक्षणादेकत्वाद्वा चतुर्णा परमाणूनां संघातलक्षणादेकत्वाद्वा चतुः प्रदेशः स्कन्ध उच्यते । एवं संख्येयाऽसंख्येयाऽनन्तानामनन्तानां च संघातलक्षणादेकत्वात् तावत्प्रदेशाः स्कन्धा उत्पद्यन्ते एवमेतेषामेव द्विप्रदेशस्कन्धप्रभृतिसंख्येयासंख्येया-ऽनन्ताऽनन्तानन्तप्रदेशस्कस्पर्श, रस, गंध, वर्ण वाले भी। अतएव यह कथन संगत हो जाता है कि 'अणु अपने कार्य (घट आदि) के द्वारा ही जाने जाते हैं, दो स्पर्श वाले, एक वर्ण, एक रस और एक गंध वाले होते हैं । द्रव्य की अपेक्षा से नित्य और पर्याय की अपेक्षा से अनित्य भी होते हैं ॥२१॥ मूलसूत्रार्थ- “एगत्त पुहुत्तेहिं खंधा" इत्यादि । स्कंधों की उत्पत्ति एकत्व से, पृथक्त्व से तथा एकत्वपृथक्त्व से होती है, परमाणु सिर्फ पृथक्त्व से उत्पन्न होती हैं ॥२२॥ तत्त्वार्थदीपिका-~-परमाणु और स्कन्ध के भेद से पुद्गल के दो भेद पहले कहे जा चुके है, अब परमाणु और स्कन्ध की उत्पत्ति का कारण बतलाते है स्कन्ध एकत्व से, पृथक्त्व से और एकत्व-पृथक्त्व दोनों से उत्पन्न होते हैं । परमाणुओं की उत्पत्ति सिर्फ पृथक्त्व से ही होती है। जो परमाणु या स्कंध अलग-अलग हों, उनका संघात हो जाना अर्थात् आपस में मिल जाना या पिण्ड रूप में परिणत हो जाना एकत्व कहलाता है । इसके विपरीत कोई अन्य निमित्त मिलने से मिले हुए पुद्गलों का बिछुड़ जाना अलग-अलग हो जाना पृथक्त्व कहलाता है । स्कंधों की उत्पत्ति इन दोनों कारणों से होती है। जैसे दो परमाणुओं के मिलने से द्विप्रदेशी स्कंध उत्पन्न होता है । इसी प्रकार द्विप्रदेशी स्कन्ध और एक परमाणु के मिलने से अथवा तीन परमाणुओं के मिलने से त्रिप्रदेशी स्कन्ध बन जाता है । दो द्विप्रदेशी स्कन्धों के मिलने से अथवा एक त्रिप्रदेशी स्कंध और एक परमाणु के मिलने से अथवा चार परमाणुओं के मिलने से चतुः प्रदेशी स्कन्ध बन जाता है।
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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