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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ. २. सू. २१ पुद्गलभेदनिरूपणम् २७१ भवन्ति एवम् प्रत्येकं ते एकरसगन्धवर्णवन्तो द्विस्पर्शवन्तः कार्यलिङ्गाश्च भवन्ति । तत्र-परमाणवात्मादि परिणामिकारणं भवति, तस्य परमाणोः आत्मनश्च सत्वे ड्यणुकादि-ज्ञानादि वा कार्य भवत्येव, परमाणो रात्मश्चाऽसत्वे न ते कार्ये भवतः । तथाच-यस्मिन् सति यस्य सद्भावो भवत्येव, तदभाने च यद् न भवत्येव, तत्कार्य व्यपदिश्यते । तदन्यत्कारणं बोध्यम्, “तत्सत्वे तत्सत्ता" "तदभावे-तदभावः-" इत्यन्वयव्यतिरेकयोः कार्यकारणभावनियामकत्वात्, एतेन यस्मिन् सति कार्यं भवत्येव, तदन्यथा च न भवत्येवेत्यवधारणमनुपपन्नम्, करवीरोत्पत्तेररुणोत्पलफलात्-स्वकाण्डात् स्वबीजत्वाच्च दृष्टत्वात्, दूर्वोत्पत्तेश्च गोलोमाऽऽविलोमादिभ्यः, गोमयादिभ्यो वृश्चिकोत्पत्तेश्च दर्शनात् इत्यपि समहितम् । कारणे सत्येव कार्योत्पत्तिरिति नियमस्य सर्वत्रैव व्यवस्थितत्वात्, तथाविधकार्योत्पादकतयाऽरुणोत्पलादिगोमयादीनापि कारणत्व पपत्तेः । एवं-प्रकृतेऽपि परमाणुषु सत्सु भवत्येव द्यणुकादिकम् , आत्मनि च सति भवत्येव ज्ञानादिकमिति भावः । संक्षेपतः परिणामिकारणापेक्षाः परिणामाः प्रतिस्वमुत्पत्तिमासादयन्ति, कारणवैकल्ये तु मन्त्रप्रतिबद्ध विषमारणशक्तिवत् कार्याणि न प्रादुर्भवन्ति, एवमेव-कर्तृनिमित्तापेक्षारूपाणि कुम्भकारदण्डाकाशादीनि कारणान्यपि--उक्तदिशैव निरूपणीयानीति भावः । ___ परमाणु सूक्ष्म, निरवयव और नित्य हैं । प्रत्येक परमाणु में एक रस, एक गंध, एक वर्ण और दो स्पर्श होते हैं । कार्य से परमाणुओं का अनुमान किया जाता है । परमाणु द्वयणुक आदि का उपादान कारण है और आत्मा ज्ञान का उपादान कारण है । परमाणु और आत्मा के अस्तित्व में द्वयणुक आदि और ज्ञान आदि कार्य होते ही हैं। अगर परमाणु का और आत्मा का अभाव माना जाय तो उनके पूर्वोक्त कार्य उत्पन्न नहीं हो सकते । जिसके होने पर ही जो होता है और जिसके अभाव में जो नहीं होता, वह उसका कार्य-कारण कहलाता है। अमुक के होने पर ही अमुक का होना—जैसे अग्नि के होने पर ही धूम का होनाऔर अमुक के न होने पर अमुक का न होना-जैसे अग्नि के अभाव में धूम का न होनायह अन्वयव्यतिरेक कहलाता है। इसी के अधार पर कार्य कारणभाव का निश्चय किया जाता है । अर्थात् इसी से हम जानते हैं कि अग्नि कारण और धूम कार्य है। जिसके होने पर कार्य होता ही है और जिसके अभावमें नहीं ही होता है इस प्रकार का अवधारण करना अयुक्त है क्योंकि करवीर की उत्पत्ति लाल कमल के फल से, अपनी शाखा से और अपने बीज से भी देखी जाती है, दूब की उत्पत्ति गाय के रोमों से और भेडके रोमों आदि से होती है और गोबर आदि से विच्छू की उत्पत्ति देखी जाती है इसका समाधान हो जाता है ।
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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