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________________ परिकलितमूर्तयो बुद्धिपथमारोहन्ति तेऽवयका उच्यन्ते सत्यतो हि स्पष्टोपसम्भ्याः स्नेहादिकृतसंयोग -वियोगभाजः अंशा अवयवाः ते भवन्ति यैः द्रव्यमन्यन् क्रियते ते सान्धेष्येव भवन्तीति भावः । चित्रसाप्रयोगाभ्याम् अवयूयन्ते पृथक क्रियन्ते इत्यवयवाः, ते च द्वमणुकादिक्रमवतामेबाऽनलिकान्तरूपादिभेदानां स्कन्धामामेव भवन्ति । न तु धर्माधर्माकाशकालमीवपरमाणूनामिति । वियुतानामवयवानां संहतिपरिणामे स्कन्धा उत्पश्चन्ते, संहतानां च मेदपरिणामे द्वद्यणुकादयः सम्पयन्ते, परमाणवः पुनर्भतादेव स्वयमवयूयमाना अबश्वा भवन्ति । नास्मात्--पुद्गलद्रव्यविषयक एवाऽक्यवव्यवहारोऽवगन्तव्यः । तथाच--षट्त्वसंख्यावच्छिन्नेषु धर्मादिव्येषु धर्मस्य अधर्मस्य-जीवाजीवाधारक्षेत्ररूपलोकाकाशस्य-एकजीवस्य चाऽसंख्येयाः प्रदेशा भवन्ति । तत्र प्रदेशस्सावत प्रकृष्टो देशः प्रदेशः परमनिरुद्धो निरवयवः स्वसिद्धोऽपि सर्वज्ञः प्रत्यक्षतयोपलभ्यमानोऽपि अग्दिर्शनैरस्मदा दिभिः अनेनाऽभ्युपायेन प्रज्ञाप्यमानः सर्वेषां धर्माधर्माकाशकालजीवानां प्रज्ञाप्यमानत्वे सत्यपि मूक्ष्म एव, न तु-स्थूलो वर्तते । द्रव्यपरमाणुपस्ग्रिहेण प्रदेशपरिमाणस्यायगतिः फर्तव्या-। एवञ्च-सन्मूर्तिमात्राकान्तो देशः प्रदेशोऽवगाहरूपो बोध्यः अथाऽवगाहलक्षणः प्रदेशः आकाशस्यैव, न तु-धर्मादीनाम् , यतोऽवगाहस्याऽऽकाशलक्षणत्वात्-? इति चेत्-का नु हानिः । कहा जाता हैं। वास्तव में स्पष्ट रूप से प्रतीत होने वाले तथा स्निग्धता आदि के कारण संयोग और विमाग वाले वे अंश अवयव हैं जिसके द्वारा द्रव्य भिन्न किया जाता है । वे स्कन्धों में ही होते हैं। स्वभाव से अथवा प्रयोग से जो पृथक् किये जाते हैं वे अवयव कहलाते है। वे अवयव द्यणुकादि से लेकर अन्य जो रूपी स्कंध है उन्हीं में होते हैं । धर्म, अधर्म, आकाश ‘काल जीव और परमाणु में नहीं होते । अलग-अलग अवयवों का जब संघात (पिण्ड) रूप परिणमम होता है, तब स्कन्ध उत्पन्न होते हैं और जो संहत (इकट्टे) हैं उनका मेद होने पर इयणुक आदि की उत्पत्ति होती है । मगर परमाणु मेद होने पर ही उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार अक्यवों का व्यवहार पुद्गल द्रव्य के विषय में ही होता है। इस प्रकार छह द्रव्यों में से धर्म, अधर्म, लोकाकाश और एक जीव के असंख्यात प्रदेश होते हैं । प्रकृष्ठदेश अर्थात जो सबसे सूक्ष्म हो, निरवयव हो और स्कंध के साथ मिला हो वह प्रदेश कहलाता है । सर्वज्ञ भगवान् उसे साक्षात् देखते-जानते हैं, मगर हम अल्पज्ञ - उसका साक्षात्कार नहीं कर सकते केवल इस प्रकार के उपाय से उसकी प्ररूपणा करते है । द्रव्य परमाणु को लेकर प्रदेश के परिमाण को समझ लेना चाहिए । एक परमाणु से आक्रान्त देश अवगाह रूप प्रदेश है । कहा जा सकता है कि अवगाह रूप प्रदेश आकाश का ही होता है, धर्म आदि का नहीं, क्योंकि अक्गाहमा आकाश का लक्षण है । किन्तु इससे
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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