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________________ तत्वार्थस्त्रे स्त्रीवेदो भक्लीलि प्रतिपादयितुं पुंस्त्वादिवेदत्रयं प्ररूपयति--" वेए तिविहे" इति.। वेद:-वेदनं वेदः, वेचते वा वेदः-लिङ्गम्, अभिलाषविशेषो वा स च वेदस्त्रिविधः पुंस्त्वं-स्त्रीत्वं-नपुंसकत्वञ्चेति तच्च-लिङ्ग द्विविधम्, द्रव्यलिङ्गं-भावलिङ्गम् तत्र द्रव्यलिङ्गे तावद् योनि लिङ्गादि नामकर्मोदयनिष्पादितं भवति भावलिङ्ग पुनर्नोकषायोदयविशेषापादितवृत्तिरूपं भवति । तत्र-पुंवेदोदयात् सूते-अपत्यं जनयति इति पुमान्-पुंस्त्वम्. स्त्रीवेदोदयात् स्त्यायति-अस्यां गर्भ इति स्त्री स्त्रीत्वम् नपुंसकवेदोदयात् तदुभयशक्तिविकलं नपुंसकं नपुंसकत्वमुच्यते तथाच--हास्यरत्यरत्यादिनवविधेषु नोकषायवेदनीयेषु वेदस्त्रिविधः पुरुषवेद-स्त्रीवेद-नपुंसकवेदभेदात् तत्र पुरुषवेदोदयात् । अनेकाकारासु स्त्रीष्वभिलाषो भवति उद्रिक्त श्लेष्मण आम्रफलाभिलाषवत् । एवं सङ्कल्पविषयीभूतासु स्त्रीष्ववपि अभिलाषो बोध्यः एवं स्त्रीवेदोदयात् पुरुषेष्वभिलाषो भवति. एवं सङ्कल्पजातेषु पुरुषेष्वषि अभिलाषो बोध्यः एवं नपुंसकवेदोदयात् कस्यचित् पुरुष बतलाते हैं कि उन शरीरों को धारण करने वाले जीवों में कोई स्त्री वेद वाला होता है, कोई पुरुषवेद वाला होता है । यह बतलाने के लिए पहले वेद के भेद बतलाते हैं ___ एक प्रकार के वेदन को अथवा जिसके कारण वह वेदन हो, उसे वेद कहते हैं। वेद एक प्रकार की अभिलाषा है और लिंग को भी वेद कहते हैं। वेद के तीन भेद हैं-पुंवेद, स्त्रीवेद, नपुंसकबेद । लिंग दो प्रकार के हैं द्रव्यलिंग और भावलिंग । योनिनामकर्म और लिंगनामकर्म के उदय से द्रव्यलिंग उत्पन्न होता है । भावलिंग की उत्पत्ति नोकषायमोहनीय कर्म के उदय से होती है । . (२) पुंवेद के उदय से पुमान् (पुरुष) होता है । संस्कृतभाषा के अनुसार इस शब्द की व्युत्पत्ति है- 'सूते अपत्यं' इति पुमान्' अर्थात् जो सन्तान को उत्पन्न करे (१) स्त्रीवेद के उदय से जिसमें गर्भ जमता है, उसे स्त्री कहते हैं (३) नपुंसकवेद के उदय से जो जीव पूर्वोक्त दोनों शक्तियों से हीन होता है अर्थात् न सन्तान उत्पन्न कर सकता है और न गर्भ धारण कर सकता है, वह नपुंसक कहलाता है । इस प्रकार हास्य, रति, अरति आदि नौ प्रकार के नोकषायवेदनीय के भेदों में एक जो वेद है, उसके तीन प्रकार हैं-.-१ पुरुषवेद, २ स्त्रीवेद और ३ नपुंसकवेद । पुरुषवेद के उदय से स्त्री की अभिलाषा उत्पन्न होती है जैसे कफ के प्रकोप वाले पुरुष को आम्रफल आदि की इच्छा होती है । इसी प्रकार संकल्प की विषयभूत स्त्रियो में भी अभिलाषा समझ लेनी चाहिए । इसी स्त्रीवेद के उदय से पुरुषों के प्रति अभिलाषा उत्पन्न होती है। संकल्प जसित पुरुषों के प्रति भी इसी के कारण अभिलाषा होती है । नपुंसकवेद के उदय से किसी को पुरुष और स्त्री-दोनों की अर्थात् दोनों के साथ रमण करने की अभि
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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