SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 825
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir षत्रिंशःस्तम्भः । तदुक्तम् ॥ “॥ व्यावहारिकप्रत्यक्षागोचरत्वममूर्त्तत्वं परमाणोर्भाक्तं स्वीक्रियतइत्यर्थः ॥” ।१५।। कालाणु, और पुद्गलाणुको परमभावग्राहकनयके मतसें, एकप्रदेशस्वभाव; और भेदकल्पनानिरपेक्षतासें शुद्धद्रव्यार्थिकनयसे एकप्रदेशस्वभाव, कालपुद्गलसे इतर धर्माधर्माकाशजीवोंको भी, अखंड होनेसें है. । १६ । भेदकल्पनासापेक्षसे शुद्ध द्रव्यार्थिकनयसें, एक छूटे परमाणुविना सर्वद्रव्यको अनेकप्रदेशस्वभाव; और पुद्गलपरमाणुको भी अनेकप्रदेश होनेकी योग्यता है, तिसवास्ते उपचारसें तिसको भी अनेकप्रदेशस्त्रभाव कहिये. और कालाणुमें सो उपचार कारण नहीं है, तिसवास्ते तिसको सर्वथा यह स्वभाव नहीं है. । १७ । शुद्धाशुद्धद्रव्यार्थिकनयके मतसें, विभावस्वभाव है. । १८ । शुद्धद्रव्यार्थिकनयके मतसें, शुद्धस्वभाव है. । १९ । अशुद्धद्रव्यार्थिकनयके मतसें, अशुद्धस्वभाव है. । २० असद्भूतव्यवहारनयके मतसें, उपचरितस्वभाव है. । २१ । येह नयोंके मतसें स्वभावोंका वर्णन कथन किया. अथ किंचिन्मात्र नयका स्वरूप लिखते हैं. “॥नानास्वभावेभ्यो व्यावृत्त्यैकस्मिन् स्वभावे वस्तुनयनं नयः॥" भावार्थः-नाना स्वभावसे हटाके, वस्तुको एक स्वभावमें प्राप्त करना, सो नय है. अथवा । “॥ प्रमाणेन संग्रहीतार्थेकांशो नयः ॥” भावार्थ -प्रमाणकरके जो संगृहीतार्थ है, तिसका जो एक अंश, सो नय. अथवा। “॥ ज्ञातुरभिप्रायः श्रुतविकल्पो वा इत्येके ॥" भावार्थ:-ज्ञाताका जो अभिप्राय, वा श्रुतविकल्प, सो नयः । अथवा। “॥ सर्वत्रानंतधर्माध्यासिते वस्तुनि एकांशग्राहको बोधो नयः॥” For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy