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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्व ६१८ तत्त्वनिर्णयप्रासाद__ भाषार्थः-यदि दर्शनसम्यक्त्व करके स्त्री, शुद्ध है, उक्तमार्गकरके सो भी, संयुक्त है, घोर दुरनुचरचारित्र आचरणकरके-इत्यादि ॥ और इस पाठकी वृत्तिमेंही महाव्रतका उच्चार कहा है; अन्यथा चतुर्विध संघ कैसे होवे? और त्रैलोक्यसारमें स्त्रीको मोक्ष कहा है. । तथा च तत्पाठः॥ वीस नपुंसकवेआ इत्थीवया य हुंति चालीसा ॥ पुंवेआ अडयाला सिद्धा इकमि समयंमि ॥१॥ भाषार्थः-नपुंसकवेद वीस (२०) स्त्रीवेद चालसि (४०), पुरुषवेद अहतालीस (४८), ये सर्व, एकसौ आट्ट (१०८) एक समयमें सिद्ध प्रश्नः-नग्न दिगंबरमुनिके चिन्हविना, किसीको भी केवल ज्ञान नहीं होता है. उत्तरः-ब्रह्मदेवकृत समयपाहुडकी वृत्तिमें लिखा है कि, भरतराजाने भावसें परिग्रह छोडा है. । तथा प्राकृतबंध हरिवंशपुराणमें लिखा है कि, शिरमें कर-हाथ डालतेही भरतनृपतिने केवलज्ञान लह्या. । और द्रव्यालिंगराहत पांडवोंने, कर्मोंका अंत किया.॥ जा चिहुरुप्पालण खिवइ हत्थु ता केवल उप्पण्णो पसत्थु॥"इतिहरिवंशपुराणे ॥ प्रश्रः-आप प्रथम लिख आए हैं कि, वे सर्व लेख आगे चलके लिखेंगे तो, अब बतलाइए, वे लेख कौनसे हैं ? उत्तरः-वे लेख सर ए. कनिंगहाम (SIR A. CUNN INGLAM) के 'आर्चीओलोजिकल रीपोर्ट' ( ARCHAEOLOGICAL REPORT ) के तीसरे वोल्यममें (१३-१६५) छपाए हुए मथुराके प्रख्यात शिलालेख हैं; जिनकी नकल नीचें लिखते हैं For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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