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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir व्याख्यानमें "श्रीभगवती सूत्र” सटीक वांचना प्रारंभ किया. जो सुननेके वास्ते पूज्य अमरसीघजी भी, अपने सब चेलोंके साथ आया करते थे. श्रोताका जमाव इतना होता रहा कि, मका' नमें बैठनेकी जगा भी मिलनी मुश्किल होगई. तब सबने सलाह करके व्याख्यानके वास्ते दूसरा बडा भारी मकान मंजुर किया, और वहां व्याख्यान होने लगा. श्रीआत्मारामजीका व्याख्यानामृत सुन करके भी, श्रोताजनोंको तृप्ति नहीं होतीथी; अर्थात् श्रवण करनेकी तृष्णा, बढतीही जातीथी. उस समय पूज्य अमरसींघजी तो ऐसे मोहित होगये कि, एक दिन श्रीआत्मारामजीको कहने लगे कि, किसीतरह मेरे चेलोंको भी, यह ज्ञान, सिखाना चाहिये. जिससें जैनमतका बडा भारी उद्योत होवे. तब श्रीआत्मारामजीने कहा कि, "पूज्यजी साहिब ! व्याकरणका अभ्यास बिना किये, यह ज्ञान पाना बडाही मुश्किल है; इस लिये प्रथम इनको व्याकरण पढाना चाहिये.” इससे पूज्य अमरसींघजीके प्रायः सब साधु उसवखत पंचसंधि पढने लग गये. एक दिन श्रीआत्मारामजीने व्याख्यानमें अवसर देखकर कहा कि, “पूर्वाचार्योंके कथन करे अर्थको छोडकर, मनःकल्पित अर्थ करनेवालोंका परलोकमें खबर नहीं क्या हाल होवेगा?" यह सुनकर, पूज्य अमरसींघजीको गुस्सा आया; और सोदागरमल्ल ओसवाल, श्यालकोटका वासी, ढुंढक श्रावकोंमें मुखी और जानकार किसी कारणसें अमृतसरमें आयाथा, तिसको कहने लगे कि, "आज काल आत्मारामको बडाही अभिमान आगया है, परंतु मैं इसका अभिमान दूर करूंगा, मेरे आगे यह क्या चीज है ? " सत्य है अपने चित्तका माना हुआ गर्व किसको सुखदाई नहीं होता है ? यतः-टिटिभः पादमुक्षिप्य, शेते मंगभयाझुवः॥ स्वचित्तनिर्मितो गर्वः, कस्य न स्यात् सुखप्रदः॥१॥ भावार्थ:-टिटिभ ( टटीरी) जानवर, मेरे पैर रखनेसें पृथिवीका भंग न होजावे ! इस भयसें अपने पैरोंको ऊंचे करके सोवे हैं. इसवास्ते अपने चित्तसें बनाया हुआ गर्व ( अहंकार)किसको सुख देनेवाला नहीं है ? ___ अमरसींघको पूर्वोक्त अहंकारमें आये हुऐ जानके, सोदागरमल्लने समझाये कि, “ पूज्यजी साहिब ! आप आत्मारामजीके साथ मत संबंधी चर्चा कदापि मत करो, यदि करोगे तो, याद रखना ! तुमारे मतकी जड काटी जायगी. मैंने अच्छी तरह समझ लिया है कि, इनके (आत्मारामजीके) सामने कोई भी जवाब देनेको समर्थ नहीं है.” सोदागरमल्लका पूर्वोक्त कहना सुनकर, पूज्य अमरसींघजी हैरान होगये और सुनकर चूपके हो रहे; और श्रीआत्मारामजीकी बराबरी करनेमें असमर्थ होकर, खुशामत करने लग गये. सत्य है "डरती हर हर करती.” श्रीआत्मारामजीको एकदिन एकांतमें ले जाकर ऐसे कहने लगे कि, “बेटा आत्मारामजी! तू हमारे मतमें लाल (रत्न)पैदा हुआ है. इस वास्ते तुजको ऐसा काम करना चाहिये कि, जिससे हमारा तुमारा आपसमें मतभेद न पडे.” तब श्रीआत्मारामजीने कहा, “ पूज्यजी साहिब! जो पिछले आचायाँका लेख शास्त्रोंमें चला आयाहै, मैं उससे उलटी प्ररूपणा कदापि न करूंगा. और आपको भी यही उचित है कि, आप जरुर सत्यासत्यका निर्णय कर लेवें. क्योंकि, यह मन For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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