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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir त्रयस्त्रिंशःस्तम्भः । ५७१ वा, अन्यजनोंको ? तिनकों तो, नही होती है. क्योंकि, भगवंतको निर्मोह होनेसें, जुगुप्साका अभाव है. जेकर अन्य जनोंकों होती है, तो क्या, मनुष्य, अमर, इंद्र, इंद्राणि, इत्यादि सहस्र जनोंकरके सकुल सभाकेविषे, वस्त्ररहित भगवंतके बैठे हुए, तिनोंकों जुगुप्सा नही होती है ? दिगंबर:- भगवंतको अतिशयवंत होनेसें, तिनका नग्नपणा नही दीखता है. श्वेतांवरः - अतिशय के प्रभावसें भगवंतका निहार भी मांसचक्षुवालोंके अदृश्य होनेसें, दोष नही है. और सामान्यकेवलियोंने तो विविक्तदेशमें मलोत्सर्ग करनेसें दोषका अभाव है. ॥ ६ ॥ सातमा और आठमा पक्ष भी ठीक नही है. मैथुनेच्छा, और निद्रा, इनको मोहनीकर्म और दर्शनावरकर्मके कार्य होनेसें; और भगवंतमें ये दोनोंही कर्म, नही है. तिसवास्ते कवलाहारका कार्य भी केवलज्ञानके साथ विरोधि नही है. ॥ ७॥ ८॥ और सहचरादि भी विरुद्ध नही है. जिसवास्ते, सो सहचर, छद्मस्थपणा है, वा अन्य कोई ? आदि पक्ष तो नही हैं. क्योंकि, दोनोंही वादियोंने ( श्वेतांवर दिगंबर दोनोंहीने ) केवली में छद्मस्थपणा माना नही है. जेकर अस्मदादिकोंमें तैसें देखनेसें, छद्मस्थपणेके साहचर्यका नियम माना जावे, तब तो गमनादिकों को भी, छद्मस्थपणेके सहचर मानने पडेंगे. और अन्य, जो कर, मुख, चालनादि, तिसके सहचारी हैं, वे भी केवलज्ञानके साथ विरोधी नही है. ऐसेंही उत्तरचरादि भी केवलज्ञानके साथ विरोधी नही है. इसवास्ते यह सिद्ध हुआ कि, कवलाहार सर्वज्ञपणे के साथ विरोधी नही है. इससें केवलिके कवलाहारका करना सिद्ध हुआ. ॥ इति केवलीभुक्तिव्यवस्था || दिगंबरः - स्त्रीको तद्भवमें मोक्ष नही होवे है. । तथा च प्रभाचंद्रः ॥ " स्त्रीणां न मोक्षः पुरुषेभ्यो हीनत्वान्नपुंसकादिवदिति ॥” भाषार्थः - स्त्रियोंको मोक्ष नही है; पुरुषोंसेंही न होनेसें, नपुंसकादिवत् । श्वेतांबरः - यहां तुमने सामान्यकरके धर्मिपणे स्त्रियां ग्रहण करी हैं, वा विवादास्पदीभृत स्त्रियां ग्रहण करी हैं ? प्रथम पक्षमें पक्षके एकदेशमें For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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