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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५०० तत्त्वनिर्णयप्रासादयथा ॥ “॥ भवचरिमं निरागारं पच्चक्खामि सवं असणं सर्बु पाणं सवं खाइमं सवू साइमं अन्नथ्थणाभोगेणं सहसागारेणं अईयं निंदामि पडिपुन्नं संवरेमि अणागयं पच्चक्खामि अरिहंतसक्खियं सिद्धसक्खियं साहुसक्खियं देवसक्खियं अप्पसक्खियं वोसिरामि॥" जइ मे हुज पमाओइमस्स देहस्स इमाइ वेलाए ॥ आहारमुवहिदेहं तिविहं तिविहेण वोसिरिअं ॥१॥ तब गुरु “निथ्थारगपारगो होहि" ऐसें कहता हुआ संघसहित वासअक्षतादि ग्लानके सन्मुख क्षेप करे.। शांतिके वास्ते 'अट्टावयंमि उसहो' इत्यादि स्तुति पढनी. और, 'चवणं जम्मणभूमी' इत्यादि स्तव पढना.। गुरु निरंतर ग्लानके आगे तीनभुवनके चैत्योंका व्याख्यान करे, अनित्यतादि बारां भावनाका व्याख्यान करे, अनादिभवस्थितिका व्याख्यान करे, अनशनके फलका व्याख्यान करे. । और संघ गीतनृत्यादि उत्सव करे। ग्लान जीवितमरणइच्छाको त्यागके समाधिसहित रहे. । तदपीछे अंतर्मुहूर्त्तके आयां, ग्लान ‘स आहारं सq देहं सव॑ उवहिं वोसिरामि' ऐसें कहें । पीछे ग्लान पंचपरमेष्ठिस्मरणश्रवणयुक्त शरीरको त्यागे ॥ इ. त्यंतसंस्कारेऽनशनविधिः ॥ मरणकालमें ग्लानको कुशकी शय्याऊपर स्थापन करना।।जन्ममरणे भूमावेव इति व्यवहारः।" अथ सर्वभावके भोक्ता कर्मके जोडनेवाले चेतनारूप जीवके गये हुए, अजीव पुद्गलरूप तिसके शरीरको सनाथता ख्यापनार्थे, तिसके पुत्रादिकोंकेवास्ते, तीर्थसंस्कारविधि कहते हैं. । सर्व ब्राह्मणको शिखा वर्जके शिर दाढी मूंछ मुंडन कराना चाहिये, कितनेक क्षत्रियवैश्यको भी कहते हैं । तथा शबका संस्कार सर्व स्ववर्णज्ञातियोंने करना, अन्यवर्ण ज्ञातिवालोंने तिसका स्पर्श नही करना. । तदपीछे गंधतैलादिसें और भले गंधोदककरके शबको स्नान करावे, गंधकुंकुमादिसें विलेपन करे, मालाकरके अर्चे, For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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