SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 609
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir एकत्रिंशस्तम्भः। यह पाठ तीन वार पढे । पीछे गुरुके वचनसें अष्टादश (१८) पापस्थानकोंको वोसरावे व्युत्सर्जन करे. । यथा ॥ “ ॥ सवू पाणाइवायं पञ्चक्खामि । सवं मुसावायं पच्चक्खामि । सवं अदिन्नादाणं प० । सवं मेहुणं प० । सवं परिग्गहं प० । सर्बु राईभोअणं प० । सर्बु कोहं प० । सर्बु माणं प० । सवं मायं प० । सवं लोहं प० । सवं पिज्ज प० । सवं दोसं कलहं अप्भक्खाणअरईरईपेसुन्नं परपरिवायं मायामोसं मिच्छादसंणसल्लं इच्चेइआइं अट्टारस पावट्ठाणाई दुविहं तिविहेणं वोसिरामि अपच्छिमम्मि ऊसासे तिविहं तिविहेणं वोसिरामि ॥" तदपीछे गीतार्थगुरु, श्रीयोगशास्त्रके पांचमे प्रकाशके कथनसें, और कालप्रदीपादिशास्त्रके कथनसें, ग्लानके आयुका क्षय जानके * संघकी, ग्लानके संबंधियोंकी, तथा नगरके राजादिकी अनुमति लेके, अनशनका उच्चार करे. । ग्लान, शक्रस्तव पढके तीनवार परमेष्ठिमंत्रको पढके गुरुके मुखसें उच्चरे.। यथा ॥ “॥ भवचरिमं पच्चक्खामि तिविहंपि आहारं असणं खाइमं साइमं अन्नथ्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सवसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि॥” इति सागारानशनम् ॥ अंतर्मुहूर्त शेष रहे हूए, निरागार अनशन कराना.॥ * भक्तप्रत्याख्यानप्रकीर्णकशास्त्रमें लिखा है कि, यदि कोइ तथ्यज्ञानी कहे, अथवा कोइ सम्यग्दृष्टि देवता कहे कि, अमुकदिन तेरा अवश्य मरण है, तबतो अपना संहननधृतिबल जानके यावत् जीवका अनशन करना, अन्यथा सागारिक अनशन करना. परंतु, जो कोइ मरणदिनके निश्चयविना यावत् जीवका अनशन करे, करावे, सो आत्मघाती साधुश्रावकघाती पंचेंद्रियघाती है; इसमें प्रायः इस कालमें यावज्जीवका अनशन नहीं कराना सिद्ध होता है. ॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy