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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासाददुःखौघस्य जलांजलिं सतनुतादालोकनादेव हि ॥ १॥ ॥ इंद्रवज्रा ॥ चेतः समाधातुमनिंद्रियार्थ पुण्यं विधातुंगणनाध्यतीतम् ॥ निक्षिप्यतेहत्प्रतिमापदाये पुष्पांजलिः प्रोगतभक्तिभावैः ॥२॥ यह पढके पुष्पांजलिक्षेप करे.। सर्व पुष्पांजलियोंके अंतमें धूपोत्क्षेप, और शक्रस्तवपाठ अवश्य करना. ॥ तदनंतर पुष्पादिकरके प्रतिमा पूजे। तदपीछे मणि, स्वर्ण, रूप्य, ताम्र, मिश्रधातु, माटीमय, कलशे स्नात्रकी चौकीऊपरि स्थापन करना. तिनमें गंगोदकमिश्रित सर्व जलाशयोंके पानी स्थापन करे. चंदन, कुंकुम, कर्पूरादि सुगंध द्रव्योंकरके वासित करे. चंदनादि करके, और पुष्पमालायोंकरके, कलशोंको पूजे. जल पुष्पादिअभिमंत्रणमंत्र पूर्वे कहे हैं ते जानने। तदपीछे सो एक श्रावक, अथवा बहुत श्रावक, पूर्वोक्त वेष शौचवाले गंधसें हस्तको लेपन करके, मालाभूषित कंठवाले तिन कलशोंको हाथऊपरि रक्खे. । तदपीछे स्वस्वबुद्धिअनुसारसें जिनजन्माभिषेकचिन्हित स्तोत्रोंको जिनस्तुतिगर्भित षट्पदादि (छप्पयआदि) को पढे । तदपीछे शार्दूलवृत्त पढे । यथा॥ ॥शार्दूलवृत्त ॥ जाते जन्मनि सर्वविष्टपपतेरिंद्रादयो निर्जरा । नीत्वा तं करसंपुटेन वहभिः साई विशिष्टोत्सवैः ॥ शंगे मेरुमहीधरस्य मिलिते सानंददेवीगणे। स्नात्रारंभमुपानयंति बहुधा कुंभांबुगंधादिकम् ॥ १॥ ॥ आर्या ॥ योजनमुखान् रजतनिष्कमयान् मिश्रधातुमृद्रचितान् ॥ दधते कलशान संख्या तेषां युगषट्खदंतिमिता ॥२॥ वापीकूप-हदांबुधितडागपल्वलनदीझरादिभ्यः॥ आनीतैर्विमलजलैः स्नानाधिकं पूरयंति च ते ॥३॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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