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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासादयथा ॥ "पंचमहत्यजुत्तो पंचविहायारपालणसमच्छो ॥ पंचसमिओ तिगुत्तो छत्तीसगुणो गुरु होइ ॥१॥ पडिरूवो तेअस्सी जुगप्पहाणागमो महरवको ॥ गंभीरो धीमंतो उवएसपरो य आयरिओ ॥२॥ अपरिस्सावी सोमो संग्रहसीलो अभिग्रहमईय ॥ अविकच्छणो अचवलो पसंतहियओ गुरु रोइ ॥३॥ कइयावि जिणवरिंदा पत्ता अयरामरं पहं दाउं ॥ आयरिएहि पवयणं धारिजइ संपयं सयलं ॥४॥" अर्थः-पांच महाव्रतयुक्त, ५, पांच प्रकारके आचार पालनेमें समर्थ, ५, पांच समिति, ५, और तीन गुप्तिसहित, ३, एवं छत्तीस गुणोंवाला गुरु होता है. । *प्रतिरूप, तेजस्वी, युग प्रधान, आगमका जानकार, मधुर वाक्यवाला, गंभीर, बुद्धिमान्, उपदेश देनेमें तत्पर, ऐसा आचार्य होता है.। किसीका आलोचित दूषण अन्यआगे प्रकाशे नही, सोमप्रकृतिवाला होवे, शिष्यादिका संग्रह करनेवाला होवे, द्रव्यादि अभिग्रहमें जिसकी मति होवे, किसीके दूषण न बोले, चपल न होवे, प्रशांतहृदयवाला होवे, ऐसे गुणोंयुक्त गुरु होता है.। कितनेही जिनवरेंद्र अजरामर पदका पंथ दिखाके मोक्षको प्राप्त हुए है; परं संप्रति कालमें तो, जिनप्रवचन, आचार्योंनेही धारण करा है.॥ अब प्रकारांतरकरके गुरुके छत्तीस गुण कहते हैं.। आचारविनय, श्रुतविनय, विक्षेपनाविनय, दोषका परिघात, एवं चार प्रकारके विनयकी प्रतिपत्ति करनेवाले गुरु होवे.। अथवा सम्यक्त्व, ज्ञान, चारित्र, इन * पंचिंदियसंवरणो तह नवविहबंभचेरगुत्तिधरो । चउविहकसायमुको इअ अटारसगुणेहिं संजुत्तो ॥ १ ॥ पांच इंद्रियको रोकनार, नवविध ब्रह्मचर्यगुप्तिके धरनार, चतुर्विध कपायसे मुक्त, एवं अष्टादश गुणोंकरी संयुक्त । इस पाठको गिणनेसें ३६ गुण पूर्ण होते हैं. ॥ पंच महावतादीनामष्टादशानामपि स्वयंकरणान्यकारणतो द्वैगुण्येन षट्त्रिंशद्गुणो गुरुर्भवतीति तु सम्यक्त्वरत्नवृत्तौ ॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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