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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८४ तत्त्वनिर्णयप्रासाद कुशाके आसनउपर आप बैठके, शिष्यको वामेपासे कुशासनोपरि बिठला तिसके दक्षिण कानको पूजके तीनवार सारखत मंत्र पढे. पीछे गुरु, अपने घरमें वा अन्य उपाध्यायकी शालामें, वा पौषधागारमें, शिष्यको पालखी, वा घोडेपर चढायके संगलगीतोंके गाते हुए, दान देते हुए, वाजंत्र वाजते हुए, यति गुरुकेपास लेजाके मंडलीपूजापूर्वक वासक्षेप करवाके, पाठशालामें लेजावे. पीछे गुरु शिष्यको आगे बिठलाके येह शिक्षाश्लोक पढे । यथा ॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अज्ञानतिमिरांधानां ज्ञानांजनशलाकया । नेत्रमुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ १ ॥ यासां प्रसादादधिगम्य सम्यक् शास्त्राणि विदन्ति परं पदं ज्ञाः॥ मनीषितार्थप्रतिपादकाभ्यो नमोस्तु ताभ्यो गुरुपादुकाभ्यः ॥२॥ सत्येतस्मिन्नरतिरतिदं गृह्यते वस्तु दूरा दप्यासन्नेप्यसति तु मनस्याप्यते नैव किंचित् ॥ पुंसामित्यप्यवगतवतामुन्मनी भावहेताविच्छा बाढं भवति न कथं स इति मत्वा त्वया वत्स त्रिशुद्ध्योपासनं गुरोः ॥ विधेयं येन जायंते गोधीकीर्त्तिधृतिश्रियः ॥ ४ ॥ For Private And Personal सनायाम् ॥ ३ ॥ ऐसें शिष्यको शिक्षा देके, और तिससें स्वर्ण वस्त्र दक्षिणा लेके, गुरु अपने घरको जावे . पीछे उपाध्याय, सर्वको पहिले मातृका पढावे; पीछे विप्रको प्रथम आर्यवेद पढावे, पीछे पडंगी, पीछे पुराणादि धर्मश पढावे क्षत्रियको भी ऐसेंही चतुर्दश विद्या पढावे पीछे आयुर्वेद, धनुर्वेद, दंडनीति और आजीविकाशास्त्र पढावे. वैश्यको धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, कामशास्त्र और अर्थशास्त्र पढावे. शूद्रको नीतिशास्त्र और आजीविकाशास्त्र पढावे, कायोंको तिनके उचित विज्ञानशास्त्र पढावे. पीछे साधुयों को चतुर्विध
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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