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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir द्वादशस्तम्भः। २९९ ॥ अथ द्वादशस्तम्भारम्भः॥ एकादशस्तंभमें जैनाचार्यकृत गायत्रीका व्याख्यान करा, अथ द्वादश स्तंभमें गायत्रीके माननेवालोंका करा व्याख्यान लिखते हैं. जो कि, परस्पर विरुद्ध है; तथाविध संप्रदायके अभावसें. । तत्रादौ सायणाचार्यकृत भाष्यका व्याख्यान करते हैं. ॥ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ॥ धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ १० ॥ व्याख्या-जो सवितादेव (नो) हमारे (धियः) कर्मोंको, वा धर्मादिविषयबुद्धियोंको (प्रचोदयात् ) प्रेरयेत् प्रेरणा करे ( तत्) तिस सर्व श्रुतियोंमें प्रसिद्ध ( देवस्य ) प्रकाशमान ( सवितुः) सर्वान्तर्यामि होनेकरके प्रेरक जगत्स्रष्टा परमेश्वरका आत्मभूत (वरेण्यं) सर्व लोकोंको उपास्यताकरके और ज्ञेयताकरके सम्यक् प्रकारसें भजने योग्य है (भर्गः) अविद्या और तिसके कार्यको भर्जन (दग्ध ) करनेसें स्वयंज्योतिः परबमात्मक तेजकों (धीमहि) तत् । जो मैं हूं सोइ वोह है और जो वोह है सोइ मैं हूं ऐसे हम ध्यावते हैं । अथवा ' तत् ' ऐसा भर्गका विशेषण है, सवितादेवकें तैसें भर्गको हम ध्यावे हैं — यः' लिंगव्यत्यय होनेसे 'यत् ' जो भर्गः हमारे ‘धियः' कर्मादिकोंको ‘प्रचोदयात् ' प्रेरणा करे 'तत् ' तिस भर्गको हम ध्यावे हैं इति समन्वयः। अथवा । (यः) जो सविता सूर्य (धियः) कर्मोको (प्रचोदयात् ) प्रेरयति प्रेरणा करता है (तस्य ) (सवितुः) तिस सर्वकी उत्पत्ति करनेवाले (देवस्य) प्रकाशमान सूर्यके (तत्) सर्वको दृश्यमान होनेसें प्रसिद्ध (वरेण्यं) सर्बको संभजनीय (भर्गः) पापोंको तपानेवाले तेजोमंडलको (धीमहि) ध्येयताकरके मनसें हम धारण करते हैं ॥ अथवा । भर्गशब्दकरके अन्न कहिये है । (यः) जो सवितादेव (धियः) कर्मोको (प्रचोदयात्) प्रेरणा करता है, तिसके प्रसादसें (भर्गः) अन्नादिलक्षण फलको (धीमहि) धारण करते हैं, तिसके आधारभूत हम होते हैं. इत्यर्थः। भर्गशब्दको For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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