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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ૨૭ .प्रथमस्तम्भः। प्रकाशता है, तीसरा यमलोक है, जिसमें प्रेतपुरुष आकाशमार्गसें जाते हैं. सूर्यके किरण तीन लोककों प्रकाश करते हैं, ऐसे किरणोंवाला सूर्य रात्रिमें कहां है ? यह रहस्य कोई नहीं जानता है. सूर्य आठों दिशा और गंगादि सात नदीयों वा सात समुद्रांकों प्रकाशता है, सो यहां यज्ञमें आवो, सोनेके हाथोंवाला सूर्य स्वर्ग और पृथ्वीके बीचमें चलता है. सूर्यकी स्तुति. हे सूर्य! तेरे चलनेका मार्ग निर्मल है. आज तूं आ कर हमारी रक्षा कर-इत्यादि. ॥ऋ० अ० १ मं० १ अ०८॥ २० ऋ०-अग्निकी स्तुति, अग्निकों आमंत्रण, हे अग्ने! तूं हमारे शत्रुओंकों मार, भस्म कर, राक्षसोंकों भस्म कर-इत्यादि. ४० ऋ०-काण्व ऋत्विक्का वर्णन, मरुत् देवताका सामर्थ्यवर्णन, काण्वकों यज्ञमें आमंत्रण, पुनः मरुत् देवताका सामर्थ्यवर्णन, उनकों विनती और आमंत्रण-४९ प्रकारके मरुत् देवताओंका सामर्थ्यवर्णन, यज्ञमें आमंत्रण और उनोंसें याचना करनी-इत्यादि. ८०-ब्रह्मणस्पति देवताका सामर्थ्यवर्णन, उनकों आमंत्रण और उनसे अनेक वस्तुओंकी याचना-इत्यादि. ९ *-वरुण, मित्र और अर्यमा, इन तीनों देवताओंका कथन, और उनोंसें प्रार्थना, धन देवो, यजमानकी रक्षा करो, शत्रुओंकों मारोइत्यादि. १० ऋ०-पूषन् देवताका वर्णन, तिसका सामर्थ्य, तिसकों आमंत्रण और तिससे धनादिकी याचना-इत्यादि. ५०-रुद्रनामक देवका वर्णन स्तोत्रद्वारा १ ऋ०-हमारे घोडे, मेष, मेषी, पुरुष, स्त्री, गौआदिके तांइ देव सुख करता है. ३ ऋ०-हे सोम! हमकों धन दे. इत्यादि वर्णन. ॥ऋ० अ० १ मं० १ अ०९॥ २४ ०-अग्निकी स्तुति, अग्निका विचित्र प्रकारके विशेषणां सं For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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