SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथमस्तम्भः। ६ ऋ०-इंद्राग्नि आदि देवताका वर्णन. १५ ऋ०-अनेक नामके देव देवीका वर्णन, और यज्ञके वास्ते आमंत्रण. १०-विष्णु परमेश्वर त्रिविक्रमावतारमें पृथिवीकी रक्षा करता भया, तिसका वर्णन. १ ३०-विष्णु त्रिविक्रमावतारधारी इस जगत्कों उद्दिश्य विशेष करके पादक्रमण करता भया, इत्यादि १ ऋ०-कोइ भी जिसको हनने सामर्थ्य नहीं, ऐसा विष्णु जगत्का रक्षक है. पृथिव्यादि स्थानों में तीन पादक्रमण करता हुआ. धर्म जो अग्निहोत्रादि तिसका पोषण करता हुआ. ____ ऋ०-हे ऋत्विगादयः! तुम विष्णु के कर्म पालनादि देखो, इत्यादि विष्णुवर्णन. १०-पंडित विष्णुसंबंधि स्वर्गस्थान उत्कृष्ट पदकों देखते हैं, जैसें चक्षु आकाशमें देखते हैं. १ ऋ०-प्रमादरहित जे पंडित हैं, वे विष्णुके पदकों दीपाते हैं. ३ ३०-यज्ञके वास्ते ऐंद्रवायुदेवताका आमंत्रणादिवर्णन. ३ ऋ०-मित्रवरुणदेवताका आमंत्रणादिवर्णन. ६ ऋ०-मरुतदेवताको विनती आमंत्रणादि. ३ *०-पूषन्देवताका वर्णन. ८ ऋ०-आप (पाणी)का वर्णन, आमंत्रण और तिससे विनती आदि. १ ऋ०-अग्निका वर्णन. ॥ऋ० अ० १ मं० १ अ०६॥ १५ ऋ०-यूपकेसाथ यज्ञके वास्ते बंधा हुआ शुनःशेपनामा जन अपनी जिंदगीके वास्ते अनेक देवताओंको विनती करता है, और उन्होंकी स्तुति करता है, विशेषकरके वरुणदेवताकी स्तुति जीवन वास्ते करता है. २१ ऋ०-शुनःशेपने वरुणकीही स्तुति करी तिसका वर्णन. २२ ऋ०-वरुणके कहनेसे शुन शेपने अग्निकी स्तुति करी.. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy