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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 32 स्वतंत्रता संग्राम में जैन गये। 'दांडी मार्च' में महिलाओं का नेतृत्व सरलादेवी साराभाई ने किया था। मध्यप्रदेश में इसी समय 'जंगल सत्याग्रह' अपनी चरम सीमा पर था। राष्ट्रीय आन्दोलन के दो चमकते सितारे पं0 जवाहर लाल नेहरू एवं सुभाष चन्द्र बोस ने आम जनता को यह समझाया कि उनकी समस्त परेशानियों का मूल कारण ब्रिटिश सत्ता है। नेहरू एवं सुभाष समाज के बिल्कुल अलग वर्गों से आये थे। नेहरू का पारिवारिक वातावरण उस समय के सम्पन्न लोगों से सम्बन्धित था जबकि सुभाष का सम्बन्ध सामान्य वर्ग से था। सुभाषचंद्र बोस 1920 में 'इंडियन सिविल सर्विस' की प्रतिष्ठित परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त कर अपनी प्रतिभा का डंका बजा चुके थे। उस समय किसी पढ़े-लिखे व्यक्ति का इस परीक्षा में चुना जाना गौरव की बात मानी जाती थी, किन्तु नेताजी ने जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड से दुखी होकर इस सेवा से इस्तीफा दे दिया। परतंत्र भारत का यह एक मात्र उदाहरण था जब किसी व्यक्ति ने इस सेवा में चुने जाने के बाद उसे लात मार दी हो। उनके इस कार्य से वह राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ते ही शीर्ष नेताओं के बीच पहुंच गये। उनका पूरा जीवन देदीप्यमान रहा। महात्मा गाँधी के विरोध के बाबजूद उन्होंने महात्मा गाँधी के समर्थन से खड़े प्रत्याशी पट्टाभिसीतारमैया के विरोध में कांग्रेस का चुनाव लड़ा एवं विजयी हुये। उनकी अध्यक्षता में सम्पन्न त्रिपुरी कांग्रेस का अधिवेशन कांग्रेस का चर्चित अधिवेशन रहा था। उनकी कार्यपद्धति एवं महात्मा गाँधी के कार्यक्रम में तादात्म्य नहीं बैठ सका, फलत: वह कांग्रेस से अलग हो गये। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें कलकत्ता में अपने निवास पर नजरबन्द कर दिया गया। इस नजरबन्दी से वह सफलता पूर्वक निकलकर देश के बाहर चले गये एवं ब्रिटिश विरोधी खेमे का नेतृत्व करने वाले जर्मनी के तानाशाह से बर्लिन में मिले। ब्रिटिश साम्राज्य में 562 रियासतें थीं, इनके अधिकांश शासक अच्छे नहीं थे, प्रजा दु:खी थी, उन पर दोहरा नियंत्रण था। पड़ोस के प्रदेशों में जन चेतना का संचार देख उनमें भी जनतांत्रिक अधिकारों और जनतांत्रिक सरकार की मांग उठने लगी। वे राज्यों के शासकों के भोग-विलास की खुलकर निन्दा करने लगे। इन सबके लिये प्रजामण्डलों की स्थापना हुई। आरंभिक प्रजामण्डल विजय सिंह पथिक, माणिकलाल वर्मा के नेतृत्व में राजस्थान की रियासतों में स्थापित किये गये। रियासतों के इन सभी संगठनों का एक अखिल भारतीय संगठन 'आल इंडिया स्टेट्स पीपुल्स कांग्रेस' के रूप में 1927 में बना। भावनगर प्रजामण्डल के अध्यक्ष वल्लभ मेहता इसके सचिव बने। इस संगठन के माध्यम से मांग की गई कि भारतीय रियासतों को भारतीय राष्ट्र का अंग माना जाना चाहिये। चौथे दशक तक रियासतों में जन आन्दोलन काफी शक्तिशाली बन गया था। राजस्थान में जयनारायण व्यास, जमनालाल बजाज, उड़ीसा में सारंगधर दास, त्रावणकोर में एनी मस्करों तथा पद्मयथान पिल्लई, जम्मू-कश्मीर में शेख अब्दुल्ला, हैदराबाद में स्वामी दयानन्द तीर्थ आदि ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। राजाओं द्वारा इनका दमन किया गया। पटियाला में आन्दोलन के नेता, प्रजामण्डल प्रमुख सेवासिंह ठिकीवाला को जेल में इतनी यातनाएं दी गईं कि वहीं उनकी मृत्यु हो गयी। For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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