SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 स्वतंत्रता संग्राम में जैन वह जैन धर्मानुयायी था। इस राजा के एक साले बासव ने 'लिगांयत' अपरनाम 'वीर शैव मत' की स्थापना की थी। बासव की बहिन पद्मावती राजा को जैनधर्म से च्युत तो न कर सकी पर राजकार्य से उसे असावधान बना दिया। अन्ततः बासव द्वारा राजा की हत्या हो गई। एक मत के अनुसार बिज्जल ने विरक्त होकर अपने पुत्र सोमेश्वर को राज्य सौंप दिया और शेष जीवन धर्मसाधना में बिताया। बिज्जल का सेनापति रचिमय्य भी जैन था। उसका ध्वजचिह्न वृषभ था। अतः यह 'वृषभध्वज' भी कहलाता था। इसने अरसियकेरे नगर में एक सहस्रकूट चैत्यालय का निर्माण कराया था। होयसल राजवंश दक्षिण भारत के ही एक प्रसिद्ध और शक्तिशाली होयसल वंश की स्थापना जैनाचार्य सुदत्त वर्धमान के आशीर्वाद से हुई थी। इस वंश का संस्थापक 'सल' कर्णाटक की पर्वतीय जाति का एक आभिजात्य किन्तु विपन्न कुल में उत्पन्न वीर युवक था। सौभाग्यवश सल सुदत्त वर्धमान के पास पहुँच गया और शिष्य बन गया। एक दिन एक 'शार्दूल' गुरु के ऊपर झपटा। वीर सल ने सिंह को मार गिराया, प्रसन्न हो गुरु ने उसे स्वतन्त्र राज्य की स्थापना का आशीर्वाद दिया। यह घटना 1006 ई0 के लगभग की है, तभी से सल 'पोयसल' कहलाने लगा, जो कालान्तर में परिवर्तित होकर 'होयसल' हो गया। इस प्रकार सल द्वारा स्थापित राज्य/देश होयसल कहलाया। इस वंश में विष्णुवर्धन 'होयसल' नाम का प्रतापी राजा परम वैष्णव था किन्तु उसकी पट्टमहिषी महारानी शान्तला देवी अपनी सुन्दरता एवं संगीत, वाद्य, नृत्य आदि कलाओं के लिए प्रख्यात थीं साथ ही परम जिनभक्त और धर्मपरायण थीं। इनकी माता माचिकब्बे भी परम जिनभक्त और धर्मपरायण थीं। उन्होंने शान्तला देवी के निधन से विरक्त होकर श्रवणबेलगोल में जाकर अपने गुरुओं प्रभाचंद्र आदि की उपस्थिति में एक माह के अनशन पूर्वक समाधिमरण किया था। विष्णुवर्धन होयसल के सेनापति गंगराज युद्धविजेता, परम स्वामिभक्त और जिनभक्त थे। अनेक उपाधियों के साथ श्रीजैनधर्मामृताम्बुधि-प्रवर्धन-सुधाकर' और 'सम्यक्त्व-रत्नाकर' जैसी उनकी उपाधियाँ थीं। शिलालेखों में गंगराज की तुलना गोम्मट प्रतिष्ठापक महाराज चामुण्डराय से की गई है। गंगराज ने गोम्मटेश्वर का परकोटा और श्रवणबेलगोल के निकट 'जिननाथपुर' नामक जैन नगर बसाया था। उन्हें विष्णुवर्धन होयसल महाराज का 'राज्योत्कर्षकर्ता' कहा गया है। विष्णुवर्धन के दान-दण्डाधीश पुणिसमय्य दण्डनायक एवं मंत्री मरियाने और भरत, दण्डाधिनाथ इम्मड़ि बिट्टिमय्य आदि भी धर्मात्मा जैन वीर थे। उत्तर भारत (लगभग 200 ई० से 1250 ई०) उत्तर भारत के मथुरा, अहिच्छत्रा, हस्तिनापुर आदि जैन संस्कृति के केन्द्र रहे हैं। चौथीं शताब्दी ई0 से छठी शताब्दी के मध्य तक उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य सर्वोपरि राज्य शक्ति था। गुप्त नरेश वैष्णव धर्मानुयायी थे पर जैन धर्म के प्रति भी वे असहिष्णु नहीं थे, उस समय जैन धर्म को राज्याश्रय प्राप्त नहीं था। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में क्षपणक का नाम आया है जो सम्भवतः दिगम्बर जैन मुनि थे। यथा धन्वन्तरि-क्षपणकामरसिंहशंकुवेतालभट्टघटकपरकालिदासा:। ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य।। -ज्योतिर्विदाभरण, 22/10 For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy