SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 एक अहिंसक युद्ध युद्ध और अहिंसक, बड़ी विरोधी बात है यह, पर इतिहास में एक ऐसा युद्ध भी हुआ जो पूर्णत: अहिंसक था। ऋषभदेव जब वैराग्य धारण कर तपस्यार्थ वन चले गये, तब उनके दो पुत्रों भरत और बाहुबली के मध्य शक्तिपरीक्षण हुआ। भरत चक्रवर्ती होने के कारण दिग्विजय कर लौटे तो उनका चक्र अयोध्या के बाहर ही रुक गया । पुरोहितों ने बताया कि अभी आपने अपने भाइयों को नहीं जीता है। तब भरत ने भाइयों के पास सन्देश भेजा। भाइयों ने भाई के शासन में रहना स्वीकार नहीं किया और वैराग्य धारण कर लिया। भरत के एक भाई बाहुबली उस समय पोदनपुर के राजा थे। वे युद्ध के लिए तैयार हो गये। दोनों ओर की सेनायें युद्धभूमि में पहुंच गई। रणभेरी बज उठी। भयानक युद्ध की विभीषिका सामने खड़ी थी, पर एक क्षण में दृश्य बदल गया । स्वतंत्रता संग्राम में जैन दोनों पक्षों के मंत्रियों ने विचार-विमर्श कर प्रस्ताव रखा कि आप दोनों चरमशरीरी ( इसी भव से मोक्ष जाने वाले) हैं, अत: आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा, व्यर्थ ही इस युद्ध में सेना मारी जायेगी। अच्छा यह होगा कि आप दोनों भाई जलयुद्ध, दृष्टियुद्ध और बाहुयुद्ध करके हार-जीत का निर्णय कर लें। अन्त में दोनों पक्षों की सहमति से भरत और बाहुबली के बीच में युद्ध हुए। चूंकि बाहुबली बलिष्ठ और ऊँचे थे, अतः तीनों में उनकी ही विजय हुई। इस पर भरत अपना चक्र बाहुबली पर चला दिया, किन्तु चक्र बाहुबली की प्रदक्षिणा कर लौट आया। भाई के इस व्यवहार को देखकर बाहुबली को वैराग्य हो गया। वे समस्त राज-पाट त्यागकर तपस्या करने वन चले गये। उन्होंने खड़े-खड़े एक वर्ष तक कठोर तपस्या की। उनके पैरों व हाथों पर लतायें लिपट गईं और पैरों में दीमकों ने वामियाँ बना लीं। इस प्रकार बिना किसी हिंसा के इस युद्ध में हार-जीत का निर्णय हो गया। बाहुबली द्वारा जीतकर भी राज्य का त्याग कर तपस्यार्थ चले जाना अपने आप में त्याग और स्वातन्त्र्य-प्रियता का अनुपम उदाहरण है। अन्य तीर्थंकर ऋषभदेव के बाद इस परम्परा में तेईस तीर्थङ्कर और हुए। रामायण या भगवान् राम की घटनायें बीसवें तीर्थङ्कर मुनिसुव्रतनाथ के काल में हुईं। जैन परम्परा में राम के स्थान पर उनके दूसरे नाम पद्म का अधिक प्रयोग हुआ है। पद्म (राम) को आधार बनाकर पद्मपुराण, पद्मचरित आदि अनेक पुराणों / काव्यों की रचनायें हुईं। For Private And Personal Use Only महाभारत में वर्णित प्रसिद्ध कौरव - पाण्डव युद्ध बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के समय हुआ । श्रीकृष्ण इन्हीं नेमिनाथ के चचेरे भाई थे। नेमिनाथ के दूसरे नाम 'अरिष्टनेमि' का प्रयोग वैदिक साहित्य में बहुधा हुआ है। कौरव - पाण्डवों को भी आधार बनाकर जैन परम्परा में प्रचुर साहित्य का निर्माण हुआ । तेइसवें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ का समय 877-777 ईसा पूर्व लगभग निश्चित है। पार्श्वनाथ ऐतिहासिक महापुरुष हैं। पार्श्वनाथ के निर्वाण के 250 वर्ष बाद महावीर का निर्वाण हुआ था। भगवान् महावीर और भारत के गणतन्त्र भारतवर्ष में आज जो गणतन्त्र परम्परा है वह भगवान् महावीर के काल में भी थी। महावीर का जन्म
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy