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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 411 रत्न हैं। तुम कहां और किन धर्मात्मा प्राणियों की खोज करते हो, इन्हीं को देखो। उनसे बेहतर साहबे कमाल तुमको और कहां मिलेगें ? इनमें त्याग था, वैराग्य था, धर्म का कमाल था । इन्सानी कमजोरियों से बहुत ही ऊँचे थे। इनका खिताब 'जिन' था। उन्होंने मोह-माया, मन और काया को जीत लिया था । यह तीर्थंकर थे। इनमें बनावट नहीं थी, दिखावट नहीं थी, जो बात थी साफ-साफ थी। यह वह लाशानी शख्सियत हो गुजरी है जिनको इन्सानी कमजोरियों और ऐबों को छिपाने के लिए किसी जाहिरा पोशाक की जरूरत महसूस नहीं हुई क्योंकि उन्होंने तप करके, जप करके, योग का साधन करके, अपने आपको मुकम्मिल और पूर्ण बना लिया था।" वगैरह.......... भगवान् महावीर सब इन्सानों का एक जैसा ख्याल करते थे। क्या ब्राह्मण! क्या शूद्र ! क्या क्षत्री ! क्या वैश्य! भगवान् महावीर के पैरोकार और चेले सब तबके के लोग थे । इन्द्रभूति वगैरह उनके ग्यारह गणधर ब्राह्मण कुल में से थे, उद्दापन मेघ कुमार वगैरह क्षत्री महावीर के चेले थे, शालिभद्र वगैरह वैश्य और हरीकेशी वगैरह शूद्र ने भी भगवान् की दी हुई पवित्र दीक्षा को हासिल कर ऊँचे पद को हासिल किया था। गृहस्थों में वैशालीपति राजा चेटक, मगध नरेश श्रेणिक और उनका लड़का कोतक वगैरह कई क्षत्री राजा थे । इसीलिए भगवान् उस जमाने की आमफहम भाषा में ही उपदेश दिया करते थे ताकि हर खास आम धर्म हासिल कर सके। जैन ग्रन्थ भी प्राकृत में लिखे गये थे ताकि सब लोग समझ सकें। आजकल का जमाना आप सब लोगों के समाने मौजूद है। आज भारतवर्ष में लाखों बेजुबान जानवर मांस खाने के लिए रोज काटे जाते हैं। दूध देने वाली गायों के गलों पर छुरी चलाई जाती है। भारतवर्ष के आदमी भूखों मर रहे हैं, बेकारी की चक्की में दरड़े जा रहे हैं, मौजूदा हुकूमत ने हिन्दुस्तान के तमाम उद्योग हिरफत पर पानी फेर दिया, किसानों पर लगान और सौदागरों पर टैक्स इतना ज्यादा लगा दिया कि लोग टैक्स के बोझ से दबे जा रहे हैं। माल पर टैक्स, गल्ले पर टैक्स, घी-खांड पर टैक्स, दूध-दही पर टैक्स, बर्तन - भाँडे पर टैक्स, कपड़े पर टैक्स, खाने के सामान पर टैक्स, पीने के सामान पर टैक्स, रोटी-पानी पर टैक्स | यहाँ तक की नमक जैसी कारआमद चीज पर भी टैक्स। इन टैक्सों की ज्यादती से हिन्दुस्तान इस कदर दब गया है कि छह करोड़ हिन्दुस्तानी एक वक्त भी पेट भरकर नहीं खा सकते। कहन (अकाल ) जुदा पड़ रहे हैं। बवाई (छूत की बीमारी) इमराज ने जुदा दम पी रक्खे हैं । आमदनी का यह हाल है कि हिन्दुस्तान की मजमुई आमदनी फोकस छह-सात पैसे दैनिक होती है, जिससे एक आदमी एक वक्त पेट भरकर रोटी नहीं खा सकता, फिर हिन्दुस्तानियों के सर पर साठ लाख मुफ्तखोर फकीरों का भार, जिनकी वजह से पन्द्रह लाख रुपया रोज इन गरीबों की पाकिट से निकलता है। यह सब होते हुए भी हिन्दुस्तान की हिफाजत के नाम पर फौज का करोड़ों रुपयों का खर्च। एक अंग्रेज की तनख्वाह हिन्दुस्तानी से कई गुनी ज्यादा । गरीब किसान गर्मी - सर्दी की सदा तकलीफ उठाकर कड़कती धूप में बदन को जलाकर रात दिन जाग जाग कर भूखा प्यासा रहकर जो कुछ जिन्स पैदा करता है उसका ज्यादातर हिस्सा तो लगान की नजर कर देता है। बाकी बचे-खुचे में कर्ज की अदायगी और दीगर लोगों की नजर नियाज का भुगतान। इस बेचारे पर क्या बचता है, यह मालूम करना हो तो गांव में जाकर मालूम करो। जहाँ देखोगे कि गरीब किसान के चूल्हे पर बर्तन नहीं, छान पर फूँस नहीं, तन को कपड़ा नहीं और पेट को पेटभर रोटी नहीं। लेकिन यह सब कुछ होते हुए भी हुकूमत के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। अगर कोई अपनी मुसीबत का रोना हुकूमत के आगे For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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